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महाकवि ज्ञानसागर की पात्रयोजना
ऋषि-वचनों को सार्थक समझते हुए भी कुकार्य हेतु प्रयत्नशील
वह जानता था कि ऋऋषियों का वचन मिथ्या नहीं होता, किन्तु एक प्रनाथ बालक उसकी पुत्री का पति बनेगा -इस बात को उसका मन स्वीकार नहीं कर सका। अतः ऋषियों के वचनों को मिथ्या करने के लिए वह सोमदत्त का वध करने को तुल गया ।'
प्रभिमानी -
गुगपाल को प्रपने पद प्रौर सामाजिक स्थिति पर बहुत प्रभिमान है । सम्भवतः वह ऊंचे-ऊंचे स्वप्न देखता है कि उसकी पुत्री भरे-पूरे धनी, कुलीन घर में जायगी । इसीलिए मुनि की घोषणा पर वह सोचता है कि मेरी पुत्री विषा का स्वामी प्रज्ञातकुलशील यह निर्धन बालक कैसे हो सकता है ? वह सोमदत्त और अपनी पुत्री के साथ को वैसा ही समझता है, जैसे यह साथ बकरी के बच्चे प्रोर शेर को बच्ची का हो रहा हो । २
धूर्त और निर्दय -
घूर्तता प्रौर निर्दयता, ये दोनों दुर्गुण गुणपाल के रोम-रोम में विद्यमान हैं। ऋषियों के वचनों को मिथ्या करने के लिए अनेक वार सोमदत्त के वध का प्रयत्न करता है । वह सोमदत्त का नाम मिटा देना चाहता है । सर्वप्रथम वह एक चाण्डाल को लालच देकर सोमदत्त के वध हेतु राजी कर लेता है । किन्तु चाण्डाल उसकी प्राशा के विपरीत निर्जन स्थान पर मारे विना उसे छोड़ देता है । भाग्यवश सोमदत्त गोविन्द ग्वाले के पास पहुँच जाता है । 3 एक दिन गुणपाल गोविन्द ग्वाले की वस्ती में पहुँचता है, तो पुनः उसके हृदय में उसे मारने की इच्छा प्रबल हो उठती है । नवनीतलेपन में भी गुणपाल चतुर है । वह अपनी मीठी बातों से गोविन्द को तो प्रभावित करता ही है, भोले-भाले सोनदत्त को भी वश में कर लेता है । उसकी हत्या हेतु एक पत्र वह सोमदत्त के द्वारा अपने घर भिजवाता है । सोमदत्त के प्रबल भाग्यवश मार्ग में पत्र की विषयवस्तु बदल दी जाती है और विष के स्थान पर गुणपाल को कन्या विषा उसका वरण करती है । गुगपाल यह वृत्तान्त सुनते ही मन के भाव छिपाते हुए गोबिन्द को इस वृत्तान्त से खुश करता है, मोर घर लौट आता है। एक दिन नागपंचमी तिथि को गुरणपाल मन्दिर के
१. दयोदयचम्पू, ३ श्लोक ४ के पूर्व का गद्य भाग ।
२. किन्नु खलु वगलोऽपि पञ्चाननतनयाया भर्ता भवितुमर्हतीति ।
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- वही, ३|प्रथम गद्यभाग का अन्तिम वाक्यांश
३. वही, ३।४-१०
४. वही, ५। श्लोक । के पूर्व के गद्यभाग भौर श्लोक १ से ३ के बाद के गद्यभागों
तक ।