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________________ काव्यशास्त्रीय विधाएं १२९ की तरह 'वोरोदय' अन्त्यानुप्रास से अलंकृत है। यमक', उपमा, अपह्नुति', उत्प्रेक्षा ४, भ्रान्तिमान्', परिसंख्या', प्रादि अलंकारों की छठा काव्य में विशेष दर्शनीय है। १२. काव्य के प्रारम्भ में ही कवि ने सज्जनों की प्रशंसा विस्तार से की है और दुर्जनों की प्रालंकारिक पालोचना भी कर दी है। १३. इस काव्य के नायक भगवान महावीर की कवि ने स्थान-स्थान पर प्रशंसा की है।' काव्य के परिशीलन से यह ज्ञात हो जाता है कि वीरभगवान् युद्धवीर तो नहीं, पर धर्मवीर प्रवश्य हैं । १० उन्हें वाह्य शत्रुओं से युद्ध की कोई प्रावश्यकता नहीं हुई, हां भीतर के शत्रनों पर विजय प्राप्त करके वोरभगवान् ने मोक्ष प्राप्त कर लिया।'' इस प्रकार 'वीरोदय' में नायक का ही प्रभ्युदय दिखाया है। १४. नायकप्रधान इस काव्य का नाम काव्य के नायक के नाम पर ही प्राधारित है। नायक का नाम है-महावीर; और महावीर के अभ्युदय से शान्त-रस की स्थापना ही कवि का लक्ष्य है; इस लक्ष्य का निर्वहण कवि ने बड़ी सूझ-बूझ के साथ किया हैं। प्रतः काव्य के नायक और काव्य के लक्ष्य के प्राधार पर कवि ने इस काम्य का नाम जो 'वीरोदय'–वीर का उदय--प्रभ्युन्नति-रखा, वह सर्वचा उचित है। 'बीरोदय' की उपर्युक्त काव्यशास्त्रीय मालोचना से स्पष्ट हो जाता है कि वह शान्त-रस-प्रधान महाकाव्य की कोटि में प्राने के लिए पूर्ण समर्थ काव्य है। महाकाव्य के लिये बताये गये प्रेमोत्सव, विवाह, मधुपान, जलक्रीड़ा इत्यादि का भले ही इसमें वर्णन न हो-(पूर्णतया शान्त रस-प्रधान होने के कारण)-तथापि भगवान के जन्माभिषेक, तपश्चरण, कैवल्यज्ञान लाभ, जनता को सम्बोधन इत्यादि १. बीरोदय, ३।२५, १७।११ २. वही, १३, २२०, ३।१६, ६।३६ ३. वही, २१४६, ४७, ६।३०, २१, ३० ४. वही, १।१५, ३१३६, ४३ ५. वही, ७१. ६. वही, २०४८-४९ ७. वही, १।१०-१५ ८. वही, १।२६-२१ ६. बही, ६६, ८।१२-२१, २०१५ १०. वही, १०।२८-३६ ११. वही, दशमसर्ग, ११॥३७.४४, १२॥३२.४५, २११२२
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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