SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकविज्ञानसागर के काव्य-एक सम्पयन मुखपी महू तो बनाती है, किन्तु पुत्री को इनके विषय में कोई निर्देश नहीं . (क) 'बुहरकचाकोश' में सोमदत्त को उपदेश देने वाले मुनि का नाम सुकेतुसरि बताया गया है। किन्तु दयोदयचम्पू' में ऋषि का नाम नहीं मिलता है। . . उपर्युक्त परिवर्तनों के प्रतिरिक्त कवि ने 'योदयचम्पू में तीन परिवर्धन भी किये है, जो इस प्रकार हैं:(6) 'दयोदयबम्पू में सोमवत्त को शिक्षा का भी उल्लेख है', वो 'बहकमाकोश'. में नहीं पाया जाता। .. (8) 'दयोदयबम्पू' में विषा विवाह के पूर्व ही सोमदत्त का दर्शन करके उस पर मासक्त हो जाती है, पर 'वृहत्कथाकोश' में ऐसा प्रसंग नहीं है। (ब) 'योदयचम्पू' में वर्णन है कि जब सोमदत्त नागमन्दिर का रहा था, उस समय महाबल प्रायवालकों के साथ गुल्ली-बण्डा खेल रहा था। सोमदत्त को प्राता हुमा देखकर उसने सोमदत्त को क्रीड़ा में अपने स्थान पर नियुक्त किया और स्वयं पूज सामग्री मेकर मन्दिर चला गया। किन्तु बृहत्तामाकोश' में इस सेम का उल्ले __स्पष्ट है कि ये परिवर्तन एवं परिक्धन कास्यास्वार में सहयता माने में सहायक सिद्ध हुए हैं। (5) सारांश . . उपर्णत क्वेिवन से स्पष्ट है कि कवि के काव्यों के मूलस्रोत के रूप में कः अन्य सामने पाते है-महापुराण, वृहत्कवाकोश, पाराधनाकपाकोश, सुदंसणचरिक, पुण्याला कपाकोश पोर सुदर्शनचरित। विवर के बयोदय एवं वीरोय. महाकायों के कपानक का स्रोत महापुराण है। सुदर्शन के कथानक का स्रोत वृहकमा के अतिरिक्त पाराधना कथाकोश, सुदंसखचरिक, पुण्यालयकवाकोश और सुवर्शनपरित नामक पार ग्रन्थ हैं; एवं अन्य दोनों-श्रीसमुद्रदत्तचरित्र और बोक्यच. कायों के स्रोत बृहत्कयाकोश पोरापनाकपाकोश-दो ग्रन्थ है। महाकवि श्रीज्ञानसागर ने मूलकया में अधिक परिवर्तन किया है । पौराणिक मास्यान को महाकाव्य का रूप देने में कवि को सफलता दिलाने वाला महाकाम्य 'पीरोदय' है । यह 'जयोदय' की अपेक्षा अधिक रोचक बन गया है। सेकषि ने १. दयोदयचम्प, ६ श्लोक ५ के बाद का गम भाव । २. बहरकपाकोश, ७२६१०६ ३. दयोदयबम्पू, ४ श्लोक ६ एवं उसके बाद का मवमान। ४. पही. ४ श्लोक १४ के पूर्व का गबभाव एवं १४-१६ ५. वही ५ श्लोक १४ के पूर्व का गबमान।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy