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महाकवि ज्ञानसागर के काव्य -
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और उसकी पत्नी का नाम अटवीश्री था। शक्तिषेरण का सत्यदेव नामक पुत्र हुआ । मुझ (प्रमितमति प्रार्थिका ) से धर्मोपदेश सुनकर इन पांचों ने धर्माचरण श्रीर व्रताचरण का पालन किया ।
- एक अध्ययन
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एक दिन शक्तिपेण अपनी स्त्री प्रटवीश्री को लेने के लिए उसके मातापिता के पास मृणालवती नगरी गया । धान्यकमाल वन में सर्पसरोवर के समीप रुका । उस समय मृणालवती नगरी में राजा धरणीपति का राज्य था । वहां रतिवर्मा से उत्पन्न सुकेतु नाम का सेठ भी रहता था। सुकेतु की पत्नी का नाम या कनकश्री । उनके एक दुराचारी भवदत्त नाम का पुत्र हुप्रा । उसकी दुष्टता कारण उसे दुर्मुख भी कहा जाता था। उसी नगर में श्रीदत्त सेठ और उनकी पत्नी विमलश्री की रतिवेगा नाम की पुत्री हुई, प्रोर प्रशोकदेव सेठ प्रोर जिनदत्ता का सुकान्त नाम का पुत्र हुप्रा । भवदत्त की प्राशा के विपरीत रतिवेगा का विवाह सुकान्त से हो गया । यह जानकर भवदत्त बहुत क्रोधित हुप्रा । उसके भय से रतिवेगा और सुकान्त ने शक्तिषेरण की शरण ली । शक्तिषेण के प्रभाव से भवदत्त ने क्रोध को भीतर ही दबा लिया ।
शक्तिषेरण ने वहाँ आए हुए दो मुनियों को प्राहार दान दिया। उस सरोवर के समीप ही सेठ मेरुकदत्त अपनी स्त्री धारिणी और भूतार्थ, शकुनि बृहस्पति र धन्वन्तरि नामक मन्त्रियों के साथ रुका था । एक दिन वहाँ एक हीनांग पुरुष प्राया । सेठ ने जब उसके होनांग होने के विषय में पूछा तब प्रत्येक मन्त्री ने अपना-अपना मन्तव्य बताया, किन्तु भूतार्थं ने कहा कि इसकी यह दशा पूर्वजन्म में हिमादि कार्यों के करने से हुई है । उसी समय उसे खोजते हुए शक्तिषेण ने वहाँ प्राकर अपने उस होनांग पुत्र की प्रसहनशीलता और अकर्मण्यता के विषय में बताया । सत्यदेव ने पिता की इच्छानुसार लोटना स्वीकार नहीं किया। फलस्वरूप शक्तिषेण 'अगले जन्म में भी मुझे तेरा स्नेह प्राप्त हो' ऐसी इच्छा प्रकट करके द्रव्यलिंगी मुनि बन गया। वह (शक्तिषेण) मृत्यु को प्राप्त होकर देव के रूप में जन्मा । जिस समय सेठ मेरुकदत्त और उनकी स्त्री ने शक्तिश्री को वीश्री के साथ मुनियों का स्वागत करके पंचाश्चर्य प्राप्त करते हुए देखा, उसी समय उन्होंने इच्छा प्रकट की कि अगले जन्म में ये हमारी सन्तानों के रूप में जन्म लें । सुकान्त और रतिवेगा ने भी दान इत्यादि के फलस्वरूप पुण्यार्जन किया । प्रमितमति ने लोकपाल की स्त्री वसुमती, जो पहले जन्म में देवश्री थीं— के व्याकुल होने पर बताया कि वही पूर्वजन्म में शक्तिषेरण की स्त्री प्रटवीश्री थी । प्रमितमति ने उसकी भी जिज्ञासा शान्त करते हुए कहा कि कुवेरकान्त हो उस जन्म का शक्तिषेण है । तुम्हारे पांच पुत्रों में से कुबेरदयित नामक पुत्र ही उस जन्म का सत्यदेव है । भवदेव ने जिस रतिवेगा प्रोर सुकान्त नामक दम्पति को जला दिया था, वही ये कबूतर - कबूतरी हैं। सेठ मेरुकदत्त श्रोर धारिणी ही तुम्हारे पति के