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________________ ५६ महाकवि ज्ञानसागर काव्य - एक अध्ययन जो कुछ पहले तैयार है वहीं खिला दे । विषा ने कहा - 'जब तक भोजन तैयार नहीं होता है, तब तक आप ये लड्डू खा लीजिए ।' ऐसा कह कर उसने अपने पिता को उन्हीं लड्डूनों में से उठाकर दो लड्डू दे दिये । गुगपाल ने जैसे ही उन लड्डूनों को खाया, वैसे ही वह अचेत होकर गिर पड़ा। विषा का चीखना चिल्लाना सुनकर जब तक पास-पड़ोस वाले आये तब तक गुणपाल के प्राण-पखेरु उड़ चुके थे । गुणश्री ने ग्राकर जब यह दुःखद समाचार सुना तो वह दुःखी मन से अपने ' पति के दुष्कृत्यों के लिए पश्चात्ताप करने लगी। उसके तथा वसन्तसेना वेश्या के वचनों से समस्त नागरिकों को वास्तविकता का ज्ञान हो गया । गुणश्री ने दो बचे हुये लड्डू खाकर अपने पति के मार्ग का अनुसरण किया । सप्तम लम्ब गुणपाल को राजसभा में उपस्थित न पाकर राजा वृषभदत्त ने उसके विषय में मन्त्री से पूछा । मन्त्री ने बताया कि विपयुक्त अन्न खाने से गुणपाल श्री गुणश्री की मृत्यु हो गई है । जिस विपान्न को खिलाकर गुणपाल सोमदत्त को मारना चाहता था, धोखे से उसे स्वयं खाकर गुणपाल की मृत्यु हो गई । राजा ने सोमदत्त का वृत्तान्त जानकर उसे बुलाया । प्राग्रहसहित प्रासन पर बिठाकर उसका कुशल समाचार पूछा । सोमदत्त ने अपने सास प्रोर श्वसुर की मृत्यु पर हार्दिक दुःख प्रकट किया । राजा ने सोमदत्त के इस दुःख के प्रति सहानुभूति प्रकट करके अपनी पुत्री के साथ विवाह करने का प्राग्रह किया । सोमदत्त ने आग्रह को स्वीकार किया । सोमदत्त और राजकुमारी का विवाह होने के समय में ही विषा वहाँ भाई श्रीर उसने महाराज के चरणों में प्रणाम किया। राजा ने अपनी पुत्री उसे और सोमदत्त को सौंप दी और सोमदत्त को अपना प्राधा राज्य दे दिया । * एक दिन सोमदत्त के घर एक मुनि प्राये । सोमदत्त, विषा और राजकुमारी ने उनका यथोचित सत्कार किया। मुनिराज ने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चरित्र रूप रत्नत्रय को अपनाने का उपदेश दिया, जिससे प्रभावित होकर सोमदत्त गम्बरी दीक्षा ले ली । विषा और वसन्तसेना वेश्या ने भी प्रायव्रत धारण कर लिया । सोमदत्त ने तपस्या करके सर्वार्थसिद्धि को प्राप्त किया । विषा धीर वसन्तसेना ने भी अपने-अपने तप के अनुसार स्वर्ग की प्राप्ति की । मुनिमनोरंजनशतक का संक्षिप्त कथासार चूंकि यह मुक्तक काव्य है मतः इसमें कथात्मकता का अभाव स्वाभाविक ही है। इसकी विषयवस्तु तो प्रमुख रूप से मुनियों के कर्तव्यों का निरूपण करना मात्र है । इस पुस्तिका के सम्बन्ध में यहाँ यह लिख देना आवश्यक है कि यह भाज सर्वथा अनुपलब्ध है । इस कृति के संपरिज्ञान हेतु मैंने जिन-जिन महानुभावों से पत्र
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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