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________________ महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन विश्राम करने के पश्चात् सोमदत्त उठा और नगर में सेठ गुणपाल के घर जा पहुंचा। सेठ की पुत्री विषा उस (युवक सोमदत्त) को देखकर अत्यन्त प्रफुल्लित हुई। घर के अन्दर पहुंचकर सोमदत्त ने वह पत्र महाबल को दिया । महाबल और उसकी माता पत्र पढ़कर विचारने लगे कि गुणपाल को अनुपस्थिति में विषा का विवाह इस युवक से कैसे किया बाय ? तब उसने सोमदत्त से पूछा कि 'पत्र देने के मतिरिक्त पिता ने और कुछ भी कहा है ?' सोमदत्त ने उत्तर दिया कि इस पत्र में लिखे हुए आवश्यक कार्य को शीघ्र सम्पन्न करने के लिए उन्होंने मुझे भेजा है। सेठ जी को वहां अनेक आवश्यक कार्य करने थे, इसलिए वे यहाँ माने में असमर्थ हैं। - सोमदत्त की बात सुनकर महाबल और उसकी माता ने परामर्श करके शुभ मुहूर्त में विषा और सोमदत्त का विवाह कर दिया । नागरिकों ने सोमदत्त और विषा के इस विवाह का अभिनन्दन किया। पंचम लम्ब विषा पौर सोमदत्त के विवाह-समाचार को सुनकर गुणपाल विचार करने लगा कि मैंने जो-जो उपाय सोमदत्त को मारने के लिए किये, वे सभी उसके जीवन के उपाय हो गये । किन्तु अब तो वह अपने ही घर में है; अतः प्रासानी से मारा जा सकता है। गुणपाल यह विचार कर हो रहा था कि गोविन्द उसके पास प्राकर सोमदत्त के विषय में पूछने लगा । गुणपाल ने कृत्रिम-हर्ष के साथ उठकर गोविन्द को बताया कि अब तो वह मेरा जामाता हो गया है, प्रतएव कुछ दिनों वह वहीं पर रहेगा। गोविन्द ने भी इस विषय पर अपनी स्वीकारोक्ति प्रकट कर दी। सोमदत्त को मारने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील गुणपाल दूसरे दिन सुबह अपने घर को लौट गया। उसके घर पहुंचते ही महाबल भोर गुणश्री ने वहाँ की स्थिति का उसको ज्ञान कराया। गुणपाल ने महाबल से पत्र मांगकर पुनः पढ़ा। उसने समझा कि दुबारा जांचे बिना ही मैंने यह पत्र सोमदत्त को दे दिया; फलस्वरूप यह अनिष्ट हो गया। गुणपाल ने अन्तः करण में उठ रहे अन्तर्द्वन्द्व को दबाकर पुत्र प्रोर स्त्री से कहा कि "मैं तो यह जानना चाहता था कि विषा के लिए यह वर तुम लोगों को ठीक लगा या नहीं ? प्रस्तु, जैसा तुमने किया, ठीक किया।" ___गुणपाल यह बात अच्छी तरह जानता था कि प्रय सोमदत्त के मर जाने से उसकी पुत्री विधवा हो जायगी। किन्तु अपने दुराग्रहवश उसने सोमदत्त को मारने Sढ़ निश्चय त्यागा नहीं।
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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