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________________ Y5 महाकवि ज्ञानसागर के काव्य-एक अध्ययन का वृत्तान्त ज्ञात होगा, तब वह धर्मपालन के लिये प्रयत्नशील होगा। प्रब पाप मुझसे उसके पूर्वजन्म का वृत्तान्त सुनें और जब उसके पास जाएं तो उसे सुनाए । सिंहचन्द्र ने कहा-भरतक्षेत्र के कौशल देश के मध्य में वृद्ध नाम का एक गांव है । उसमें मगायण ब्राह्मण और उसकी पत्नी मधुरा निवास करते थे । उसको पुत्री का नाम था-वारुणो । वह मगायण मरकर प्रयोध्या की राजमहिषी सुमित्रा को हिरण्वती नाम की पुत्री के रूप में उत्पन्न हुमा। युवती हो जाने पर उसका विवाह पोदनपुर के राजा पूर्णचन्द्र के साथ हुआ। मृगायण ब्राह्मण को स्त्री मधुरा ने पूर्णचन्द्र की पुत्री रूप में जन्म लिया। मैं ही पूर्वजन्म में भद्रमित्र था। पूर्वजन्म में जो प्रापकी वारुणी नाम की लड़की थी, उसी ने मापके यहां पूर्णचन्द्र के रूप में जन्म लिया। आपके पिता पूर्णचन्द्र भद्रबाहु नामक श्रीगुरु के समीप में मुनि बने; और मैं उन्हीं पूर्णचन्द्र के समीप में मुनि हुमा। दान्तमति प्रायिका के पास, प्रापकी माता भी प्रायिका बन गई। आपके स्वामी राजा सिंहसेन मरकर अशनिघोष हाथी हुये । एक दिन वह प्रशनिघोष मुझे मारने पाया तो मैंने उसे समझाकर प्रात्मोद्धारक व्रत करने को कहा। एक बार व्रत की पारणा के लिए वह नदी में गया, तो वहां कीचड़ में फंस गया, वहाँ से वह नहीं निकल सका। धर्मभावना से प्रेरित होकर उसने समाधि ले ली। सत्यधोष का जीव सर्प होकर फिर चमरमग हुप्रा था। मरकर वह पुनः सर्प हुमा। उसी सर्प ने अश निघोष के मस्तक पर काट लिया। प्रशनिधोष मरकर सहस्रार स्वर्ग के रविप्रभ विमान में श्रीधर नामक देव हमा। पम्मिल मन्त्री के जीव, बन्दर ने उस सर्प को मार दिया। प्रशनिघोष हाथी के मस्तक से मोती और दांत निकालकर, ब्याध ने धनमित्र सेठ को बेच दिए । सेठ ने उन्हें वर्तमान राजा पूर्णचन्द्र को दे दिया।" पंचम सर्ग सिंहचन्द्र के पूर्ववृत्तान्त सुनाने पर राप्रदत्ता, पूर्णचन्द्र के पास मायो और उससे बोली कि,-- 'तू भोगों में लिप्त होकर मनुष्य जन्म का दुरुपयोग कर रहा है। भोगलिप्सा के परिणामस्वरूप पुरुष या तो नरक में जाता है या फिर पशुयोनि में पहुंच जाता है । मनुष्य को भोगमय जीवन बिताने की अपेक्षा त्यागमय जीवन विताना ज्यादा अच्छा होगा। साथ ही रामदत्ता ने पूर्णचन्द्र द्वारा सुनाया गया वृत्तान्त भी सुना दिया। रामदत्ता का उपदेश सुनकर पूर्णचन्द्र भगवान् महन्त का पूजन करता हुमा
SR No.006237
Book TitleGyansgar Mahakavi Ke Kavya Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Tondon
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1996
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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