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________________ का उल्लेख है जो वैशाली का निवासी और बुद्ध का अनुयायी था। संयुत्तनिकाय में एक अन्य पिंगी का उल्लेख उपलब्ध होता है जिसने अर्हत पद को प्राप्त किया था। सुत्तनिपात में भी हमें महर्षि पिंगी का उल्लेख उपलब्ध होता है। सुत्तनिपात के पारायणवग्ग में सर्वप्रथम महर्षि पिंगी को बावारी का शिष्य बताया गया है। बावारी के 16 शिष्यों में महर्षि पिंगी भी एक हैं। इन्हें लोक-विश्रुत, ध्यानी, पूर्व संस्कारों से सुसंस्कृत, गणी आदि विशेषण भी दिए गए हैं। पारायणवग्ग के पिंगी मानवक पुच्छा सुत्त में बुद्ध और पिंगी के बीच हई चर्चा का भी उल्लेख है। यहाँ पिंगी बुद्ध के सम्मुख अपनी वृद्धावस्था का भी चित्रण प्रस्तुत करते हैं और कहते हैं कि मैं जीर्ण हूँ, दुर्बल हूँ, विवर्ण हूँ, मेरे नेत्र और कान ठीक नहीं हैं। आप मुझे धर्म का उपदेश करें जिसे जानकर जन्म-जरा का अन्तर कर सकूँ और बीच में ही मोह सहित मृत्यु को न प्राप्त करूँ। बुद्ध पिंगी को अप्रमत्त बनने का तथा तृष्णा का अन्त करने का उपदेश देते हैं। सुत्तनिपात के उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि पिंग बुद्ध के समकालीन हैं, किन्तु वय में उनसे ज्येष्ठ हैं। सुत्तनिपात में उनके बुद्ध के अनुयायी होने का विवरण बुद्ध शासन की महिमा दिखाने हेतु है। अतः सूत्तनिपात का सम्पूर्ण विवरण यथावत् रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। प्रो. सी. एम. उपासक253 ने पालि साहित्य में उल्लेखित पिंगी या पिंगियानी के ऋषिभाषित के पिंग से भिन्न होने की सम्भावना व्यक्त की है। उनके अनुसार ऋषिभाषित के पिंग एक प्राचीन ऋषि हैं, जिससे पिंगी या पिंगियानी की परम्परा चली है। हमें प्रो. उपासक के इस निष्कर्ष से सहमत होने में कोई आपत्ति नहीं है। यह सम्भव है कि पिंग ऋषि की परम्परा में हुए किसी पिंगियानी ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया हो। किन्तु, सुत्तनिपात के उपर्युक्त उल्लेख की जिसकी हमने चर्चा की है प्रो. उपासक ने सम्भवतः उसे लक्ष्य में नहीं लिया है। वे संयुत्तनिकाय और अंगुत्तरनिकाय के पिंगियानी की चर्चा करते हैं। सुत्तनिपात में इन्हें महर्षि बावारी शिष्य बताया है, अतः यहाँ पिंगी, परम्परा का नहीं अपितु व्यक्ति का सूचक है। पुनः पिंगी को व्यक्ति के रूप में महर्षि, गणनायक, लोकविश्रुत, ध्यानी आदि विशेषण दिये गये हैं। वे निश्चय ही बुद्ध से ज्येष्ठ हैं। सुत्तनिपात में उल्लेखित पिंगी को ऋषिभाषित का पिंग ऋषि माना जाये या उनका शिष्य माना जाए यह विवाद का विषय हो सकता है, किन्तु इससे ऋषिभाषित के पिंग नामक अर्हत् ऋषि की ऐतिहासिकता संपुष्ट होती है। सुत्तनिपात की अट्ठकथा में पिंगी को अर्हत कहा गया है।254 अतः सम्भावना यह भी हो सकती है कि सत्तनिपात के पिंगी ही ऋषिभाषित के पिंग हों। ऋषिभाषित : एक अध्ययन 91
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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