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सर्व प्राणियों के प्रति दया करता हुआ जो इस प्रकार की कृषि करता है वह चाहे ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो, वैश्य हो या शूद्र हो सिद्धि को प्राप्त करता है।251 यह आध्यात्मिक कृषि का स्वरूप है जो एक ओर आध्यात्मिक साधना के विभिन्न अंगों को स्पष्ट करता है, तो दूसरी ओर यह भी स्पष्ट करता है कि इस प्रकार की आध्यात्मिक कृषि करने वाला व्यक्ति चाहे वह किसी जाति का हो मुक्ति को प्राप्त करता है। इसी अध्याय में सबसे महत्त्वपूर्ण बात जो हमें देखने को मिलती है वह यह है कि एक ब्राह्मण परिव्राजक चारों वर्गों की मुक्ति की अवधारणा को प्रतिपादित करता है।
स्वयं ऋषिभाषित में ही इस प्रकार की आध्यात्मिक कृषि का वर्णन कुछ भिन्न रूप में हमें मातंग नामक 26वें अध्याय में भी मिलता है। जहाँ पिंग नामक इस अध्ययन में केवल चार गाथाओं में दूसरा विवरण है वहाँ मातंग में 8 गाथाओं में इसका विवरण प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार इस अध्याय से आध्यात्मिक कृषि का विवरण 26वें मातंग अध्याय का ही एक संक्षिप्त रूप है।
जैन परम्परा में तो हमें इस प्रकार की कृषि का विवरण देखने को नहीं मिला, किन्तु बौद्ध परम्परा में सुत्तनिपात और संयुत्तनिकाय में इस आध्यात्मिक कृषि का निरूपण है। सुत्तनिपात के चतुर्थ कसिभारद्वाज सुत्त में दूसरा विवरण हुआ है। वहाँ बुद्ध स्वयं अपने को एक कृषक के रूप में प्रस्तुत करते हैं और कहते हैं-श्रद्धा मेरा बीज है, तप वृष्टि है, प्रज्ञा मेरे युग और नंगल हैं, लज्जा नंगल दण्ड है। मन जोत है और स्मृति मेरी फाल एवं छकुनी है। मैं वचन और आहार के विषय में संयत हूँ। सत्य की निराई करता हूँ। निर्वाण की ओर जाने वाला वीर्य अर्थात पुरुषार्थ मेरे जोते हए बैल हैं। वे निरन्तर उस दिशा की ओर जा रहे हैं जहाँ जाकर कोई शोक नहीं करता। इस प्रकार की जाने वाली खेती अमृत फलप्रदायी होती है और ऐसी खेती करके मनुष्य सब दुःखों से मुक्त हो जाता है।
संयुत्तनिकाय में भी लगभग इसी प्रकार का विवरण उपलब्ध होता है। आध्यात्मिक कृषि सम्बन्धी विवरण इस तथ्य की ओर हमें सूचित करता है कि समाज में भिक्षोपजीवी श्रमणों के प्रति भी कहीं-कहीं आक्रोश भी था और उनसे यह कहा भी जाता था कि तुम भिक्षा माँगने की अपेक्षा खेती क्यों नहीं करते? इसके प्रत्युत्तर में श्रमण अपने आध्यात्मिक कृषि का विवरण प्रस्तुत करते थे। ___ऋषिभाषित के अतिरिक्त पिंग सम्बन्धी विवरण हमें बौद्ध परम्परा में भी मिलता है।252 बौद्ध परम्परा में अंगुत्तरनिकाय में पिंगियानी नामक एक ब्राह्मण 90 इसिभासियाई सुत्ताई