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________________ मेतेज्ज भयालि एक ही व्यक्ति हों, किन्तु निश्चित प्रमाण के अभाव में अधिक कुछ कह पाना सम्भव नहीं है। बौद्ध परम्परा में मेत्तजि थेर147 का उल्लेख उपलब्ध होता है, इन्हें मगध के ब्राह्मण परिवार से सम्बन्धित माना गया है। ये युवा होने पर अरण्यवासी भिक्षु बन गये। तत्पश्चात् ये बुद्ध से मिले, उनसे चर्चा की एवं संघ में प्रवेश लिया और अन्त में अर्हत् अवस्था को प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त बौद्ध परम्परा में बावरी के शिष्य मेत्तग थेर का भी उल्लेख मिलता है। यद्यपि मेत्तजि और मेत्तग थेर का सम्बन्ध मेत्तेज्ज भयालि से हो सकता है, यह कहना कठिन है। इनके अतिरिक्त एक अन्य मेत्तिय थेर का उल्लेख भी उपलब्ध होता है। इन मेत्तिय थेर को छब्बग्गीया भिक्षओं के एक वर्ग का नेता भी कहा गया है। इनके अतिरिक्त बौद्ध परम्परा में मेत्तेय्य का भी उल्लेख उपलब्ध होता है। ये मेत्तेय्य आगामी पाँचवें कल्प में होने वाले अजित बुद्ध माने गये हैं। महावंश के अनागत वंश में इनका उल्लेख उपलब्ध होता है। इनके अतिरिक्त सुत्तनिपात148 में तिस्स के मित्र एक अर्हत् मेत्तेय्य थेर का भी उल्लेख उपलब्ध होता है। यद्यपि इन सब विवरणों के आधार पर यह कह पाना तो कठिन है कि मेत्तेज्ज भयालि और बौद्ध परम्परा के मेत्तेय्य का क्या सम्बन्ध है? बौद्ध परम्परा में एक भद्दालि थेर का भी उल्लेख है। यद्यपि भद्दालि और भगालि में भाषिक साम्यता होने पर भी दोनों में किसी प्रकार की समानता बता पाना कठिन ही है। 14. बाहुक ऋषिभाषित के चौदहवें अध्याय में अर्हत् ऋषि बाहुक के उपदेशों का संकलन मिलता है। बाहुक का उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त सूत्रकृताङ्ग150, सूत्रकृताङ्गचूर्णी151 और सूत्रकृताङ्ग पर शीलांकाचार्य152 द्वारा लिखित टीका में भी है। यद्यपि इन सभी सन्दर्भो में हमें उनके जीवनवृत्त के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं होता है। सूत्रकृताङ्ग नमि, नारायण, असित देवल, द्वैपायन, पाराशर आदि ऋषियों के उल्लेख के प्रसंग में ही बाहुक का भी उल्लेख करता है और यह बताता है कि अर्हत् प्रवचन में मान्य इन बाहुक ऋषि ने सचित्त जल का सेवन करते हुए भी मुक्ति को प्राप्त किया। सूत्रकृतांगचूर्णी में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इनका उल्लेख ऋषिभाषित में है तथा इन प्रत्येकबुद्धों ने वन में निवास करते हुए तथा वनस्पति, बीज और शीतल जल का सेवन करते हुए मुक्ति प्राप्त की। इससे इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि ऋषिभाषित और सूत्रकृतांग में ऋषिभाषित : एक अध्ययन 63
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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