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25. जो जिनेश्वर की आज्ञा को पूर्णरूपेण प्रसन्नता के साथ शिरोधार्य करते हैं वे कल्याणादि सुखों को सहजभाव से प्राप्त करते हैं। उनके लिए ऋद्धियाँ भी दुर्लभ नहीं हैं।
25. Those who adopt Jainism as their mode of life and conduct willingly, automatically, earn all rewards. They are endowed with mastery over natural forces and elements.
मणं तधा रम्ममाणं, णाणाभावगुणोदयं।
फुल्लं व पउमिणीसण्डं, सुतित्थं गाहवज्जितं।।26।। 26. जैसे विविध भावों और गुणों के उदय से हृदय आह्लादित होता है। जैसे ग्राहवर्जित-मगरमच्छों से रहित सुतीर्थ (द्रह) विकसित कमल-लताओं के समूह से शोभित होता है।
26. These instructions cheer up all and tone each one's moral conduct. They are like lotus-spangled holy lakes free from crocodiles.
रम्मं मन्तं 'जिणिन्दाणं, णाणाभावगुणोदयं।
कस्सेयं ण प्पियं होज्जा, इच्छियं व रसायणं?।।27।। 27. इसी प्रकार विविध भावों और गुणों के प्राचुर्य से जिनेश्वरों का मन्तव्य (मन्त्ररूप सिद्धान्त) रमणीय होता है। मनोवांछित रसायन के समान जिनेश्वरों का मन्तव्य किसको रुचिकर न होगा?
27. The preachings of Jainism are richly endowed and beneficially pleasant. Who will not relish such instructions that be-token spiritual elevation, welcome to all ?
नण्हातो व सरं रम्मं, वाहितो वा रुयाहरं।
छुहितो व जहाऽऽहारं, रणे. मूढो व बन्दियं ।।28।। 28. अस्नात व्यक्ति को सरोवर प्रिय है, रोगी को वैद्य या चिकित्सालय प्रिय है, भूखे को भोजन प्रिय है और युद्धभूमि में मूर्ख या व्याकुल व्यक्ति और कैदी अथवा मागध को सुरक्षित स्थान प्रिय है।
28. One unabluted seeks ponds and lakes, a patient seeks a clinic, a starving one cherishes meals and fearful individual in a battle field seeks a cosy refuge.
वण्डिं सीताहतो वा वि, णिवायं वाऽणिलाहतो। तातारं वा भउव्विग्गो, अणत्तो वा धणागम।।29॥
45. यम अध्ययन 429