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20. Non-violence consoles and reassures every body. Nonviolence is like the immanent God in all beings..
देविंदा दाणविंदा य, णरिंदा जे वि विस्सुता।
सव्वसत्तदयोवेतं, मुणीसं पणमन्ति ते।।21।। 21. जो भी विश्रुत-विख्यात देवेन्द्र, दानवेन्द्र और नरेन्द्र हैं वे सत्त्वधारी समस्त प्राणियों पर दयाभाव धारण करने वाले मुनीन्द्र को नमस्कार करते हैं।
21. All the majestic and glorious emperors, demons and regal beings bow to the compassionate saints.
तम्हा पाणदयटाए, तेल्लपत्तधरो जधा।
एगग्गयमणीभूतो, दयत्थी विहरे मुणी।।22।। 22. अतः दयावान मुनि प्राणियों पर दया के लिये तैलपात्रधारक के समान एकाग्र-मन होकर विचरण करे।
22. That enjoins upon such merciful monks to vigilantly cultivate it in their fearless conduct.
आणं जिणिन्दभणितं, सव्वसत्ताणुगामिणिं।
समचित्ताऽभिणन्दित्ता, मुच्चन्ती सव्वबन्धणा।।23।। 23. समस्त सत्त्वधारी जीवों का अनुगमन करने वाली जिनेश्वर देव कथित आज्ञा को प्रसन्नता और समचित्त से स्वीकार कर (मुमुक्षु) समस्त प्रकार के बन्धनों से मुक्त हो जाता है।
23. The aspirant follows the commandment of the Jain prophet that inspires every living being, willingly and eagerly and attains deliverance.
वीतमोहस्स दन्तस्स, धीमन्तस्स भासितं जए।
जे णरा णाभिणन्दन्ति, ते धुवं दुक्खभायिणो।।24।। 24. वीतमोह (वीतराग), दान्त और प्रज्ञावान द्वारा कथित आज्ञा को जो अच्छी नहीं मानकर पालन नहीं करते हैं वे निश्चय से दुःख के अधिकारी, दुःखों के भाजन बनते हैं।
24. The edict of such non-attached, charitable and profoundly wise beings, if not followed leads to miseries.
जेऽभिणन्दन्ति भावेण, जिणाणं तेसि सव्वधा। कल्लाणाई सुहाइं च, रिद्धीओ य ण दुल्लहा।।25।।
428 इसिभासियाइं सुत्ताई