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उपनिषदों में मिलता है। गीता58 में नारद को दिव्यविभूतियों में माना गया है। महाभारत में नारद और असित देवल के संवाद की सूचना भी उपलब्ध होती है। वहाँ इन्हें पर्वत का मामा भी बताया गया है। भागवत में भी नारद का उल्लेख प्राप्त है। भागवत की अवतारों की एक सूची में इन्हें ऋषियों की सृष्टि में होने वाला विष्णु का तीसरा अवतार भी कहा गया है। जहाँ हिन्दू परम्परा नारद को विष्णु का अवतार कहती है, वहाँ बौद्ध परम्परा इन्हें गौतम बुद्ध के पूर्ववर्ती एक बुद्ध के रूप में स्वीकार करती है, जबकि जैन परम्परा में इन्हें भावी तीर्थङ्कर कहा गया है। यदि हम तीनों परम्परा में उपलब्ध नारद सम्बन्धी विवरणों को देखें तो प्रथम तो यह लगता है कि वस्तुतः नारदों की कोई एक परम्परा रही है। जैन आगम औपपातिक सूत्र से यह ज्ञात होता है कि नारदीय परिव्राजकों की एक विशिष्ट परम्परा अनेक शताब्दियों तक चलती रही है। नारदों की इस परम्परा में ही ऋषिभाषित के देव नारद भी एक माने जा सकते हैं जो निश्चितरूप से बुद्ध, महावीर और पार्श्व के पूर्व अरिष्टनेमि के काल में हुए होंगे।
प्रस्तुत अध्याय में जैन परम्परा में स्वीकृत पाँच महाव्रतों को ही चार शौचों में विभाजित किया गया है। इसमें विशेषता यह है कि ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह
को एक ही में वर्गीकृत किया गया है। इससे ऐसा लगता है कि ग्रन्थप्रणेता पर पार्खापत्य परम्परा के चातुर्याम की अवधारणा का प्रभाव है, क्योंकि पार्श्व के चातुर्याम में भी ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को एक ही वर्ग में वर्गीकृत किया गया है।
___ 2. वज्जीपुत्त (वात्सीपुत्र) जैन परम्परा में वज्जीपुत्त का उल्लेख केवल ऋषिभाषित में पाया जाता है।61 किन्तु, बौद्ध परम्परा में वज्जियपुत्त थेर का उल्लेख हमें अनेक स्थानों पर मिलता है।62 शुबिंग और उपासक दोनों वज्जीपुत्त को बौद्ध परम्परा से सम्बद्ध करते हैं।63 बौद्ध परम्परा में वज्जीपुत्तकों का एक सम्प्रदाय भी था जो कुछ बातों में सामान्य बौद्ध भिक्षओं से मत-वैभिन्न्य रखता था। यद्यपि प्रो. सी. . एस. उपासक ने ऋषिभाषित के वज्जीपुत्त को बौद्ध परम्परा से सम्बद्ध मानने
में एक शंका उपस्थित की है। उनके मतानुसार वज्जीपुत्त का सम्प्रदाय इस ऋषिभाषित ग्रन्थ की रचना की अपेक्षा कुछ परवर्ती है। वस्तुतः बौद्ध परम्परा में जिस वज्जिपुत्तीय सम्प्रदाय का उल्लेख है, वह ईसा पूर्व पाँचवीं शताब्दी में ही अस्तित्व में आ गया था, अतः उनकी यह आशंका समुचित प्रतीत नहीं होती है। फिर वज्जीपुत्त तो बुद्ध के समकालीन ही है।
ऋषिभाषित : एक अध्ययन 41