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________________ नारदीय परिव्राजकों की एक परम्परा का उल्लेख यह सूचित करता है कि नारद के अनुयायी परिव्राजकों की एक स्वतन्त्र परम्परा थी। बौद्ध परम्परा में भी हमें अनेक नारदों का उल्लेख मिलता है। सर्वप्रथम चौबीस बुद्धों की अवधारणा में नवें बुद्ध को नारद कहा गया है। इसके अतिरिक्त थेरगाथा की अट्ठकथा में पद्मोत्तर बुद्ध के समकालीन नारद नामक एक ब्राह्मण का भी उल्लेख मिलता है।47 इसी प्रकार थेरगाथा की अट्ठकथा में अर्थदर्शी बुद्ध के समकालीन एक अन्य नारद नामक ब्राह्मण का भी उल्लेख है।48 साथ ही बौद्ध साहित्य में वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त के मन्त्री का नाम भी नारद बताया गया है।49 मिथिला के एक राजा का नाम भी नारद मिलता है,50 किन्तु हमारी दृष्टि में इन सभी नारदों का ऋषिभाषित के नारद से कोई सम्बन्ध नहीं है। बौद्ध साहित्य में एक काश्यपगोत्रीय नारद का उल्लेख मिलता है।51 इनका उल्लेख ब्राह्मण ऋषि नारद देव के रूप में भी हुआ है। कहीं इन्हें नारद देवल भी कहा गया है। किन्तु, हमें ऐसा लगता है कि नारद और देवल एक व्यक्ति न होकर अलग-अलग व्यक्ति हैं। महाभारत में नारद और असित देवल के संवाद का उल्लेख है। अतः यह माना जा सकता है कि नारद और असित देवल समकालीन रहे होंगे। हमारी दृष्टि में बौद्ध साहित्य में उल्लेखित नारद देव और ऋषिभाषित के देव नारद एक ही व्यक्ति रहे होंगे। वैदिक एवं हिन्द परम्परा में देवऋषि नारद के उल्लेख व्यापक रूप से मिलते हैं। ऋग्वेद 2 के कुछ सूक्तों के रचयिता पर्वत नारद और अथर्ववेद के कुछ सूक्तों के रचयिता कण्व नारद माने गये हैं। इसी प्रकार सामवेद की परम्परा में भी नारद का उल्लेख आता है। छान्दोग्य उपनिषद् में नारद को विभिन्न विद्याओं का ज्ञाता कहा गया है।55 इसी उपनिषद् में नारद और सनत्कुमार के संवाद का उल्लेख उपलब्ध होता है। छान्दोग्य उपनिषद् के समान जैन आगम ज्ञाताधर्मकथा और औपपातिक में इन्हें चारों वेद और विभिन्न विद्याओं में निष्णात कहा गया है। छान्दोग्य उपनिषद् में नारद कहते हैं कि मैं विविध विद्याओं का ज्ञाता होते हुए भी मन्त्रविद् हूँ, आत्मविद् नहीं। इससे ऐसा लगता है कि प्रथमतः नारद बाह्य कर्मकाण्ड, शौच तथा विविध लौकिक एवं चमत्कारी विद्याओं की साधना में तत्पर रहे होंगे, किन्तु आगे चलकर उनकी अध्यात्म में रुचि जागृत हुई होगी। परिणामतः वे वैदिक परम्परा से श्रमण परम्परा की ओर आकृष्ट हुए होंगे, फलतः श्रमण परम्परा में भी इन्हें आदरपूर्ण स्थान प्राप्त हो गया। छान्दोग्य उपनिषद् के नारद-सनत्कुमार संवाद से इसकी पुष्टि होती है। छान्दोग्य उपनिषद् के अतिरिक्त नारद का उल्लेख नारदपरिव्राजकोपनिष एवं नारदोपनिषद् आदि अनेक 40 इसिभासियाइं सुत्ताई
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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