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12. मूल कौतूहलजन्य कार्यकलापों (ऐन्द्रजाल) से, वाणी चातुर्य से, कहानियों के माध्यम से अथवा द्यूतकला से जीवन जीते हैं उनका जीवन दोषपूर्ण है । ऐसा अर्हत् इन्द्रनाग ऋषि बोले ।
12. Such careers are least imitable, who entertain as necromancers, quizzical speakers and narrators of tables or gamblers, said Indranag, the seer.
मासे मासे य जो बालो, कुसग्गेण आहारए । ण से सुक्खायधम्मस्स, अग्घती सतिमं कलं ।।13।।
13. जो बाल-अज्ञानी महीने - महीने में कुशाग्रमात्र आहार - भोजन करता है वह श्रुताख्यात धर्म (आत्मिक धर्म) की सौंवी कला भी प्राप्त नहीं करता ।
13. The demonstrator of his own virtue by living austerely on one meagre meal a month remains satisfied by infinitesimal virtue.
मा ममं जाणऊ कोयी, माहं जाणामि किंचि वि।
अण्णातेणऽत्थ अण्णातं चरेज्जा समुदाणियं ।।14।।
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14. मुझे कोई नहीं जाने और न मैं किसी को जानूं । अज्ञात के साथ अज्ञात बनकर समाज में (भिक्षा के लिये) विचरण करे ।
14. Let none know me and I know none. One should move incognito along the face of the globe and beg for one's meals.
पंचवणीमगसुद्धं, जो भिक्खं एसणाए एसेज्जा ।
तस्स सुद्धा लाभा, हणणादीविप्पमुक्कदोसस्स ।।15।।
15. जो दोष - प्रमुक्त मुनि है वह पांच प्रकार के बनीपकों का बाधक न बनता हुआ, सम्यक् प्रकार से अन्वेषण करता हुआ भिक्षा ग्रहण करता है तो उसे कर्म नाश का लाभ सुलभ है।
15. A monk freed of all vices and surviving on carefully chosen alms of food (without usurping the food claimed by dog, guest, beggar, weak or Brahmin) frees himself spontaneously of all Karmas.
पातरासं ।
जहा कवोता य कविंजला य गावो चरन्ती इह एवं मुणी गोयरियं णो वीलवे णो वि य संजलेज्जा ।।16।।
चरेज्जा
418 इसिभासियाई सुत्ताई