________________
19. जो जिस कार्य के योग्य है वह उसी कार्य को करे। जिस कार्य में जिसका विश्वास नहीं है वह उस कार्य को छोड़ देता है। जैसे कामी पुरुष नग्नत्व और मुण्डनत्व को छोड़ देता है अर्थात् संयम मार्ग का त्याग कर देता है।
19. One should choose a vocation, that one has a knack for. A libidinous individual has little inclination to monkhood as a man averse to a vocation never seeks it.
जाणेज्जा सरणं धीरो, ण कोडिं एति दुग्गतो।
ण सीहं दप्पियं छेयं, णेभं भोज्जाहि जम्बुओ।।20।। 20. धैर्यशील महापुरुष की शरण लेनी चाहिए, ऐसा समझो। धीर के जैसी शरणागत की रक्षा दुर्ग से युक्त पर्वत शिखर भी नहीं कर सकता। दृप्त सिंह और कुशल-निपुण हस्ति शृगाल का भोज्य नहीं हो सकता।
20. Pray, seek refuge in a great soul. A mountainous fortress is a poor protection compared to a valorous protector. A brave lion and an astute elephant are never a jackal's prey.
वेसपच्चाणसंबद्धे, संबद्धं वारए सदा।
णाणा-अरति-पायोग्गं, णालं धारेतु बुद्धिम।।21।। 21. वेष-प्रच्छादन-रजोहरणादि मुनि-वेष से युक्त और परमार्थतत्त्व से सम्बद्ध श्रमण मुनिभाव के विरुद्ध आस्रव एवं मिथ्यात्वजन्य क्रियाओं से असम्बद्ध रहे अथवा तत्त्वविरुद्धगामी पुरुषों से सम्पर्क न रखे। बुद्धिमान् श्रमण के लिए अरतिप्रयोजक वस्त्रादि का धारण करना अथवा अरति-प्रयोजक-मानसिक शान्ति भंग करने वालों का सम्पर्क न रखना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु उसके लिए संयम की साधना ही अपेक्षित है।
21. One initiated in a monk's garb should veer of any prescribed act. He should beware of characters who are not likeminded. To a monk donning non-provocative austere garb and similar mental frame is not enough. He should cultivate restraint constantly.
बम्भचारी जति कुद्धो, वज्जेज्ज मोहदीवणं।
ण मूढस्स तु वाहस्स, मिगे अप्पेति सायक।।22।। ___22. ब्रह्मचारी यदि किसी कारण से क्रोधित हो भी जाय तब भी वह मोह को उद्दीप्त करने वाले पदार्थों से दूर ही रहे अर्थात् मोह को उद्दीप्त न होने दे। जैसे
38. सातिपुत्र बुद्ध अध्ययन 407