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सुभावभावितप्पाणो, सुण्णं रण्णं वर्णपि वा।
सव्वमेतं हि झाणाय, सल्लचित्ते व सल्लिणो।।15।। 15. स्वभाव से भावित आत्मा के लिए शून्य वन और सघन बस्ती (ग्राम) दोनों समान हैं। उसके लिए ये सभी ध्यान की कारणभूत होती हैं और सशल्यहृदयधारी के लिए ये सभी शल्यकारी होती हैं अर्थात् आर्तध्यान का निमित्त बनती हैं।
15. To a genuinely-endowed ascetic the dense towns are akin to wilderness. To such a one all circumstances conduce to self-absorption while to mundane beings they conduce to intenser materialism and distraction.
दुहरूवा दुरन्तस्स, णाणावत्था वसुंधरा।
कम्मादाणाय सव्वंपि, कामचित्ते व कामिणो।।16।। 16. नाना रूप में स्थित वसुन्धरा दुष्टाशय वाले के लिए दुःख रूप और कर्मादान का साधन है। जैसे कामी व्यक्ति के लिए समस्त पदार्थ कामोत्पादक होते हैं।
16. The multifaceted mother-earth has abundance of misery and Karmic involvement for the selfish materialist as any and every article can provoke libido in a lascivious man's heart.
सम्मत्तं च दयं चेव, णिण्णिदाणो य जो दमो।
तवो जोगो य सव्वो वि, सव्वकम्मक्खयंकरो।।17।। ___ 17. सम्यक्त्व, दया, निदान रहित संयम, तप और (शुभ) योग ये समस्त गुण उसके समस्त प्रकार के कर्मों का क्षय करते हैं।
17. Equanimity, compassion, absolute austerity, penances and Yoga are the qualities that eradicate Karmas.
सत्थकं वा वि आरम्भं, जाणेज्जा य णिरत्थकं।
पडिहत्थिं स जोएन्तो, तडं घातेति वारणो।।18।।
18. आरम्भ सार्थक भी होता है और निरर्थक भी होता है, ऐसा समझो। प्रतिद्वन्द्वी हस्ति को देखकर हाथी तट को भी तोड़ देता है।
18. An initiative may be meaningful or infructuous. On detecting another elephant as adversary, an elephant can demolish the river bank to no purpose in a fit of rage.
जस्स कज्जस्स जो जोगो, साहेतं जेण पच्चलो।
कज्जं वज्जेति तं सव्वं, कामी वा णग्गमुण्डणं।।19।। 406 इसिभासियाई सुत्ताई