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जेणाभिभूतो जहती विद्धंसती जेण कतं स तिव्वजोती परमप्पमादो, कोधो, महाराज, णिरुज्झियव्वो ।।15।
तु धम्मं च पुण्णं ।
15. जिससे ( क्रोध से ) अभिभूत होकर मानव धर्म को छोड़ देता है और स्वकृत पुण्यों का विध्वंस कर देता है ऐसा वह तीव्र ज्वाला युक्त सर्वोच्च प्रमाद रूप क्रोध भूपति निग्रह योग्य है । अथवा महाराज ! यह क्रोध निग्रह करने योग्य है।
15. Listen to me O Prince, such a foe as anger deprives man of his very sense of humanity and renders him empty of all virtue. Hence it must be smothered then and there.
ह
भासं
करेतीह
णिरुज्झमाणो विमुच्चमाणो ।
करेतीह
हट्टं च भासं च समिक्ख पणे
कोवं णिरुम्भेज्ज सदा जितप्पा ।।16।।
16. जो निग्रह (निरोध) किये जाने पर हृष्ट करता है और छोड़े जाने पर भस्मीभूत करता है। अतः प्रज्ञावान जितात्मा क्रोधाग्नि की हृष्टता और भस्मशीलता की समीक्षा कर, क्रोध का सर्वदा निग्रह करे ।
16. It lends you strength if you can contain it and destroys you once you leave it unbridled. Pray, exercise your own discretion whether to contain it or leave it unbridled.
एवं से सिद्धे बुद्धे विरते विपावे दन्ते दविए अलं ताई णो पुणरवि इच्चत्थं हव्वमागच्छति त्ति बेमि ।
छत्तीसं तारायणिज्जमज्झयणं ।
इस प्रकार वह सिद्ध, बुद्ध, विरत, निष्पाप, जितेन्द्रिय, वीतराग एवं पूर्ण त्यागी बनता है और भविष्य में पुनः इस संसार में नहीं आता है।
This is the means, then, for an aspirant to attain purity, enlightenment, emancipation, piety, abstinence and nonattachment. Such a being is freed of the chain of reincarnations.
ऐसा मैं (आध्यात्मिक लक्ष्मी सम्पन्न अर्हत् तारायण ऋषि) कहता हूँ। Thus, I spiritual pastmaster, Tarayan, the seer, do pronounce. तारायण नामक छत्तीसवाँ अध्ययन पूर्ण हुआ । 36 ।
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36. तारायण अध्ययन 399