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5. अज्ञानग्रस्त विमूढात्मा केवल वर्तमान को देखता है और माया को महाबाण बनाकर, उससे अपनी आत्मा को बींध डालता है।
5. A confused being cares for the present only and pierces his soul with arrow of illusion.
मण्णे बाणेण विद्धे तु, भवमेकं विणिज्जति।
मायाबाणेण विद्धे तु, णिज्जती भवसंतति।।6।। 6. बाण से बींधे जाने पर एक भव बिगड़ता है किन्तु मायारूपी बाण से विद्ध होने पर भव-परम्परा ही बिगड़ जाती है। ऐसा मैं मानता हूँ।
6. An arrow can merely ruin one incarnation while illusion endangers the very perennial career of his.
अण्णाणविप्पमूढप्पा, पच्चुप्पण्णाभिधारए।
लोभं किच्चा महाबाणं, अप्पा विधइ अप्पक।।7।। ___7. अज्ञानग्रस्त विमूढात्मा केवल वर्तमान को देखता है और लोभ को महाबाण बनाकर, उससे अपनी आत्मा को बींध डालता है।
7. A confused being cares for the present only and pierces his soul with avarice.
मण्णे बाणेण विद्धे तु भवमेकं विणिज्जति।
लोभबाणेण विद्धे तु, णिज्जती भवसंतति।।8।। 8. बाण से बींधे जाने पर मात्र एक भव बिगड़ता है किन्तु लोभरूपी बाण से विद्ध होने पर भव-परम्परा ही बिगड़ जाती है, ऐसा मैं मानता हूँ।
8. An arrow can merely spoil one incarnation while avarice imperils the very perennial career of his.
तम्हा तेसिं विणासाय, सम्ममागम्म संमति।
अप्पं परं च जाणित्ता, चरेऽविसयगोयरं।।9।। 9. अतएव क्रोधादि चारों कषायों का विनाश करने के लिए विशद बुद्धि से सम्यक् दर्शन/सत्य तत्त्व को प्राप्त करे और स्व तथा पर का ज्ञान प्राप्त कर विषयवासना रहित पथ पर विचरण करे।
9. That warrants attaining the ultimate truth by true perspective and conquering the four evils. One should discern the self from the non-self and free oneself from desire. 390 इसिभासियाई सुत्ताई