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________________ 34. चउतीसं इषिगिरिज्झयणं पंचहिं ठाणेहिं पण्डिते बालेणं परीसहोवसग्गे उदीरिज्जमाणे सम्म सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खेज्जा अधियासेज्जा : प्रज्ञाशील मानव अज्ञानियों द्वारा पांच प्रकार से उदीर्ण/प्रेरित किये जाने वाले परीषहों और उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से सहन करे, सामर्थ्य से सहन करे, दैन्य भावों से रहित होकर सहन करे और उन पर विजय प्राप्त करे। A wise man should stoically suffer provocation and iniquities inflicted by the unwise. He should never be depressed or cowed down at such a treatment. (1.) बाले खलु पण्डितं परोक्खं फरुसं वदेज्जा। तं पण्डिते बह मण्णेज्जा : 'दिदा मे एस बाले परोक्खं फरुसं वदति, णो पच्चक्खं। मुक्खसभावा हि बाला, ण किंचि बालेहिन्तो ण विज्जति।' तं पण्डिते सम्मं सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खेज्जा अधियासेज्जा। (1) यदि कोई बाल/मूर्ख प्राणी प्रज्ञाशील को परोक्ष में (पीठ पीछे) कठोर वचन कहता है तो पण्डित पुरुष विचार करे कि 'यह अज्ञानी परोक्ष में कठोर वचन कह रहा है अर्थात् निन्दा कर रहा है, किन्तु मेरे सन्मुख कुछ नहीं कह रहा है। अज्ञानी मूर्ख-प्रकृति के होते हैं। इनको किंचित् भी ज्ञान का अनुभव नहीं है।' अतः ज्ञानवान मूर्यों की निन्दा या कठोर वचनों को सम्यक् प्रकार से सहन करे, सामर्थ्य से सहन करे, शान्ति रखे और उन पर विजय प्राप्त करे। 1. If a fool back-bites in respect of wise man the latter should be thankful that at least the former has spared him the humiliation of slighting him in his face. Fools are short-sighted. They have scanty wisdom. Hence it is but proper that the wise stand their · nuisance without getting perturbed, patiently and stoically. (2.) बाले खलु पण्डितं पच्चक्खमेव फरुसं वदेज्जा। तं पण्डिए बहु मण्णेज्जा : 'दिवा मे एस बाले पच्चक्खं फरुसं वदति, णो दण्डेण लट्टिणा वा लेलृणा वा मुट्ठिणा वा बाले कवालेण वा अभिहणति तज्जेति तालेति परितालेति परितावेति उद्दवेति। मक्खसभावा ह बाला, ण किंचि बालेहिंतो ण विज्जति।' तं पण्डिते सम्मं सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खेज्जा अहियासेज्जा। 34. ऋषिगिरि अध्ययन 383
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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