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एयं किसिं कसित्ताणं,
सव्वसत्तदयावहं। माहणे खत्तिए वेस्से, सुद्दे वावि य सिज्झती ॥ 4 ॥
4. प्राणीमात्र पर कारुण्यभावधारक जो इस प्रकार की खेती करता है वह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र हो तब भी विशुद्ध स्थिति को प्राप्त करता है।
4. An individual compassionate to each living being cultivates spiritually, be he Brahmin, Kshatriya, Vaishya or Shudra and he thus attains highest piety.
एवं से सिद्धे बुद्धे विरते विपावे दन्ते दविए अलं ताई णो पुणरवि इच्चत्थं हव्वमागच्छति त्ति बेमि ।
पिंगज्झयणं ।
इस प्रकार वह सिद्ध, बुद्ध, विरत, निष्पाप, जितेन्द्रिय, वीतराग एवं पूर्ण त्यागी बनता है और भविष्य में पुनः इस संसार में नहीं आता है।
ऐसा मैं (अर्हत् माहण परिव्राजक पिंग ऋषि) कहता हूँ ।
This is the means, then, for an aspirant to attain purity, enlightenment, piety, abstinence and non-attachment. Such a being is freed of the chain of reincarnations.
Thus I (Brahmin Ping, the nomadic seer) do pronounce. पिंग नामक बत्तीसवाँ अध्ययन पूर्ण हुआ । 321
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32. पिंग अध्ययन 377