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25. पणवीसं अम्बडज्झयणं
(1.) तए णं अम्बडे परिव्वायए जोगंधरायणं एवं वयासी: 'मणे मे विरई भो देवाणुप्पिओ, गब्भवासाहि, कहं न तुमं बम्भयारि?' तए णं जोगंधरायणे अम्बडं परिव्वायगं एवं वयासी: आरिया एहि या एहि ता आयाणाहि। जे खलु हारिता पावेहिं कम्मेहिं, अविप्पमुक्का ते खलु, गब्भवासाहि सज्जन्ति। ते सयमेव पाणे अतिवातेन्ति अण्णे वि पाणे अतिवातावेन्ति अण्णे वि पाणे अतिवातावेन्ते वा सातिज्जन्ति समणुजाणन्ति; ते सयमेव मुसं भासन्ति..... सातिज्जन्ति समणुजाणन्ति; अविरता अप्पडिहतापच्चक्खातपावकम्मा मणुजा अदत्तं आदियन्ति..... सातिज्जन्ति समणुजाणन्ति; ते सयमेव अब्बम्भपरिग्गहं गिण्हन्ति मीसियं भणियव्वं जाव समणुजाणन्ति। एवामेव ते अस्संजता अविरता अप्पडिहतापच्चक्खातपावकम्मा सकिरिया असंवुता एकन्तदण्डा एकन्तबाला बहुं पावं कम्मं कलिकलुसं समन्जिणित्ता इतो चुता दुग्गतिगामिणो भवन्ति। एहि हारिता आयाणाहिं। ____ 1. पश्चात् अम्बड परिव्राजक ने योगन्धरायण से इस प्रकार कहा—भो देवानुप्रिय! मेरे मन में गर्भावास से विरक्ति है। हे ब्रह्मचारी! तुम्हें गर्भावास (अथवा गर्भावास-मैथुन) से विरक्ति क्यों नहीं है? ___ तत्पश्चात् योगन्धरायण ने अम्बड परिव्राजक से इस प्रकार कहा--आर्य! आओ, आओ-इस तथ्य को समझो। पाप कर्मों से पराभूत और बद्ध पुरुष निश्चय से गर्भावास में उत्पन्न होते हैं। वे स्वयं प्राणियों की हिंसा करते हैं और दूसरों के प्राणों की हिंसा करवाते हैं। जो दसरे प्राणियों का वध करते हैं, वध के लिए दूसरों को प्रेरित करते हैं तथा उसका अनुमोदन करते हैं। वे स्वयं मृषा/झूठ बोलते हैं, मृषा के लिए दूसरों को प्रेरित करते हैं, मृषा का अनुमोदन करते हैं। जो मानव अविरत हैं, जो पाप कर्मों की परिणति को रोकने के लिए प्रत्याख्यान नहीं करते हैं वे अदत्तादान/चोरी का भी सेवन करते हैं, दूसरों को चोरी के लिए प्रेरित करते हैं
और उसका अनुमोदन करते हैं। जो स्वयं अब्रह्मचर्य और परिग्रह का सेवन करते हैं। यहाँ मैथुन और परिग्रह का मिश्रित संयुक्त वक्तव्य है। यावत् वे काम-वासना
और परिग्रह के लिए दसरों को प्रेरणा देते हैं और उसका अनुमोदन करते हैं। इस प्रकार वे असंयत, अविरत, प्रत्याख्यान रहित, पापकर्म करने में सक्रिय, असंवृत्त, पूर्णतः दण्ड पाने योग्य और पूर्णतः अज्ञानशील प्राणी अनेक प्रकार के निकृष्ट और 340 इसिभासियाइं सुत्ताई