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अप्पारोही जहा बीयं, धूमहीणो जहाऽनलो । छिन्नमूलं तहा कम्मं, नट्ठसण्णो व देसओ ।। 24।।
24. विनष्ट (शक्तिहीन) बीज और धूम्ररहित अग्नि जैसे नष्ट हो जाते हैं वैसे ही कर्म का मूल मोह के नष्ट हो जाने पर समस्त कर्म भी नष्ट हो जाते हैं। जैसे नष्ट संज्ञा वाला उपदेशक समाप्त हो जाता है ।
24. As the poorly sown seed and the smokeless fire last not, so do Karmas exhaust once the sustaining attachment ceases to exist. It is like a swooning preacher's utterance.
जुज्जए कम्मुणा जेणं, वेसं धारेइ तारिसं । वित्तकन्तिसमत्थो वा, रंगमज्झे जहा नडो | | 25 |
25. जिस प्रकार के कर्मों से युक्त होगा उसी प्रकार का वह वेश, सम्पत्ति, सौन्दर्य और सामर्थ्य को धारण करेगा। जैसे रंगमण्डप में नट धारण करता है।
25. As an actor dons various garbs suitable to his role on the stage, so does an individual as dictated by his Karmas in respect of wealth, countenance and strength.
संसारसंतई चित्ता, देहिणं विविहोदया । सव्वे दुमालया चेव, सव्वपुप्फफलोदया ।। 26।।
26. देहधारियों को संसार रूपी बीज की परम्परा विचित्र और विविध रूप में प्राप्त होती है। (बीजभेद से) जैसे समस्त वृक्ष पुष्पों और फलों से विविध प्रकार प्राप्त होते हैं।
26. Individuals harvest their Karmic rewards multifarious shapes in the world as do varying plants, myriad kinds of fruits and flowers.
पावं परस्स कुव्वन्तो हसते मोहमोहितो । मच्छो गलं सन्तो वा, विणिग्धातं न पस्सई ॥27॥
27. मोहग्रस्त जीव दूसरे (की हानि ) के लिए पाप करता हुआ हँसता है। मछली (आटे की गोली) गले में उतारते समय नाशकारी काँटे को नहीं देखती है।
27. A selfish and sinful being seeks to harm another. He is like a fish swallowing the bait ignorant of the fatal hook.
परोवघायतल्लिच्छो, दप्पमोहबलुदूधुरो | सीहो जरो दुपाणे वा, गुणदोसं न विन्दती ॥28॥
24. हरिगिरि अध्ययन 335