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11. Gods, serpentine demi-gods, angels, beasts and men are all inevitably at the sheer mercy of transience.
दाणमाणोवयारेहिं,
सामभेयक्कियाहि
य।
ण सक्का संणिवारेडं, तेलोक्केणाविऽणिच्चता ।।12।।
12. दान, मान, उपचार, साम, भेद, और क्रिया आदि ही नहीं अपितु तीनों लोक की शक्तियाँ भी इस अनित्यता को रोकने में सक्षम नहीं हैं।
12. This momentary nature of life defies all remedies, charity, ego, sundry efforts, craft and all imaginable endeavours by man or by gods.
उच्चं वा जइ वा णीयं, देहिणं वा णमस्सितं । जागरन्तं पमत्तं वा, सव्वत्थानाऽभिलुप्पति ।।13।।
13. देहधारी चाहे उच्च हो या नीच हो, दूसरों से नमस्कृत हो, जाग्रत् हो या प्रमत्त हो, अनित्यता सबका नाश करती है।
13. Whoever is reincarnated, be he noble or mean, honoured, vigilant, or defiant is doomed to end in death.
“एवमेतं करिस्सामि, ततो एवं भविस्सति । " संकप्पो देहिणं जो य, ण तं कालो पडिच्छती ।।14।।
14. 'मैं इस प्रकार करूँगा तो ऐसा हो जाएगा' मानव के मन में इस प्रकार के संकल्प चलते रहते हैं, किन्तु काल उसके संकल्पों को स्वीकार नहीं करता है।
14. One keeps on calculating in one's own way but death explodes all such castles in the air.
जा जया सहजा जा वा, सव्वत्थेवाणुगामिणी । छाय व्व देहिणो गूढा, सव्वमतेतिऽणिच्चता ।।15।।
15. प्राणी कहीं भी जावे किन्तु अनित्यता छाया की भाँति स्वाभाविक रूप से सर्वत्र उसके साथ रहती है । छाया पृथक् भी दृष्टिगत हो सकती है किन्तु अनित्यता इतनी प्रच्छन्न है कि कहीं भी दिखाई नहीं देती।
15. Wheresoever one may flee, death, like an inseparable shadow, chases him invariably. Shadow may be detected or ridden off. Not so the invisible death.
कम्मभावेऽणुवत्तन्ती, दीसन्ती य तधा तधा । देहिणं पकतिं चेव, लीणा वत्तेय णिच्चता।।16।।
332 इसिभासियाई सुत्ताई