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________________ 23. तेवीसं रामपुत्तियज्झयणं दुवे मरणा अस्सिं लोए एवमाहिज्जन्ति, तंजहा : सुहमतं चेव दुहमतं चेव। रामपुत्ते ण अरहता इसिणा बुइत। एत्थं विण्णत्तिं बेमि। इमस्स खलु ममाइस्स असमाहियलेसस्स गण्डपलिघाइयस्स। गण्डबन्धणपलियस्स गण्डबन्धणपडिघातं करेस्सामि। अलं पुरेमएणं। तम्हा गण्डबंधणपडिघातं करेत्ता णाणदंसणचरित्ताइं पडिसेविस्सामि। णाणेणं जाणिय दंसणेणं पासित्ता संजमेणं संजमिय तवेण अविहकम्मरयमलं विधुणित विसोहिय अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरन्तसंसारकन्तारं वीतिवतित्ता सिवमयलमरुयमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तियं सिद्धिगतिणामधिज्ज ठाणं संपत्ते अणागतद्धं सासतं कालं चिट्ठिस्सामि त्ति। इस लोक में दो प्रकार के मरण कहे गये हैं। तद्यथा-1. सुख मृत्यु और 2. दुःख मृत्यु। इसकी व्याख्या (प्रतिपादन) मैं यहाँ करूँगा। ऐसा अर्हत् रामपुत्र ऋषि बोले मैं असमाधित-अशुभलेश्या वाला हूँ, गण्ड–राग-द्वेषमय दुःखमरण रूपी गाँठ (व्रण) से पीड़ित हूँ। दुःखमरण के ग्रन्थि-बन्धन से जीर्ण (शिथिल) हो रहा हूँ। इस ग्रन्थि का मैं नाश करूँगा, दुःखमरण का नाश करके रहूँगा। अतः दुःखमृत्यु रूपी गाँठ का नाश करके ज्ञान-दर्शन-चारित्र की आसेवना करूँगा। ___ ज्ञान से जानकर, दर्शन से देखकर, संयम से संयमित होकर, तप से अष्टविध कर्मरज मैल को झड़का कर, आत्मा को शोधित कर, अनादि, अनन्त, दीर्घमार्ग वाले चतुर्गतिरूप संसार की अटवी को पार कर, शिव, अचल, अरुज, अक्षय, अव्याबाध, पुनः जन्मरहित, सिद्धिगति नामक स्थान को प्राप्त कर भविष्य में शाश्वत काल पर्यन्त मैं वहाँ स्थिति करूँगा। Two kinds of death may end human life—a happy one or a miserable one. This chapter will delineate the two, said Ramputra, the seer : I am accursed with distractions and mundane traits. I suffer from the carbuncles of attachment-aversion. I am a sick being, prone to an unhappy doom. I resolve to avail of a remedy for 326 इसिभासियाई सुत्ताई
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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