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17. सत्तदसं विदुणामज्झयणं
इमा विज्जा महाविज्जा, सव्वविज्जाण उत्तमा । जं विज्जं साहइत्ताणं, सव्वदुक्खाण मुच्चती ॥1॥
1. वह विद्या महाविद्या है और समस्त विद्याओं में प्रशस्ततम है। इस विद्या का साधन कर आत्मा समस्त दुःखों से मुक्त होता है।
1. Here-in is contained supreme knowledge. It is knowledge par excellence. Once it is practised the soul is freed of all misery. जेण बन्धं च मोक्खं च जीवाणं गतिरागतिं । आताभावं च जाणाति, सा विज्जा दुक्खमोयणी ।। 2 ।। विदुणा रहता इसिणा बुझतं ।
2. जिस विद्या से बन्ध और मोक्ष, गति और आगति तथा आत्म भाव का परिज्ञान होता है वही विद्या दुःख -मोचनी है।
ऐसा अर्हत् विदु ऋषि बोले
2. That knowledge is truly beneficial which imparts discretion to discern bondage from liberation, happy destiny from an unenviable one.
Added Vidu, the seer :
सम्म रोगपरिणाणं, ततो तस्स विणिच्छितं । रोगोसहपरिण्णाणं, जोगो रोग तिगिच्छितं ॥3॥
3. सम्यक् रूप से सर्वप्रथम रोग का परिज्ञान होना चाहिए | पश्चात् रोग का निदान होना चाहिए। रोग की औषध का परिज्ञान होना चाहिए। तभी उस औषध के सेवन से रोग की चिकित्सा हो सकती है अर्थात् रोग मुक्त हो सकता है।
3. You should have an exhaustive knowledge of the disease. Then you should diagnose it carefully. You should have adequate knowledge of medicine. Then alone the remedy can cure the malady.
सम्म कम्मपरिणाणं, ततो तस्स विमोक्खणं । कम्ममोक्खपरिणाणं, करणं च विमोक्खणं ।। 4 ।।
306 इसिभासियाई सुत्ताई