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2. संसार में पूर्वकृत पाप-कर्म ही दुःख का मूल है। पाप-कर्म का निरोध करने के लिए भिक्षु (मुनि) सम्यक् प्रकार का आचरण करे।
2. Accumulated Karmas yield pain. Let the saint regulate his conduct so as to exterminate all sin.
सभावे सति कन्दस्स, धुवं वल्लीय रोहणं।
बीए संबुज्झमाणम्मि, अंकुरस्सेव संपदा।।3।। 3. वृक्ष के स्कन्द का सद्भाव होने पर लता उस पर अवश्य ही बढ़ेगी। बीज . के विकसित होने पर अंकुरों की सम्पदा अवश्य बढ़ेगी।
3. A climber is sure to spread by virtue of a stem that is suitable. Germination always results in seedlings.
सभावे सति पावस्स, धुवं दुक्खं पसूयते।
णासतो मट्टियापिण्डे, णिव्वत्ती तु घडादिण।।4।। 4. पाप का सद्भाव होने पर उससे दःख की उत्पत्ति अवश्य होगी। मृत्तिकापिण्ड के अभाव में घटादि की रचना सम्भव नहीं है। (अर्थात् मृत्पिण्ड है तो घटादि उत्पन्न हो सकते हैं। पाप है, इसीलिए दुःख की सृष्टि है।)
4. A proliferating sin will yield woe. In the absence of clod there can be no pitcher.
सभावे सति कन्दस्स, जहा वल्लीय रोहणं।
बीयातो अंकुरो चेव, दुक्खं पावा उ जायइ।।5।। 5. स्कन्द का सद्भाव होने पर जैसे लता उस पर चढ़ती है और बीज से अंकुर विकसित होते हैं वैसे ही पाप रूपी लता से दःख अंकुरित होते हैं।
5. As the conduciveness of stem encourages a climber, and germination a seedling, so does sin to woe.
पावघाते हतं दक्खं, पुफ्फघाए जहा फलं।
छिंदाए मुद्धसूईए, कतो तालस्स संभवो?।।6।। 6. जैसे पुष्प का नाश करने पर फल नष्ट हो जाते हैं वैसे ही पाप का नाश करने पर दुःख नष्ट हो जाते हैं। ताड़ वृक्ष के अग्र (शिखर) भाग को सूई (कील) से बींध दिया जाये तो क्या उस ताड़ वृक्ष में कभी फल लग सकते हैं? नहीं लगते।
6. As fruition is exterminated by plucking off a flower, so woes are eliminated by avoiding sins. If the apical of a palm plant be punctured with a needle the plant's non-fruition is preordained. 296 इसिभासियाइं सुत्ताई