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12. बारसं जण्णवक्कीयज्झयणं
जाव जाव लोसणा ताव ताव वित्तेसणा, जाव जाव वित्तेसणा ताव ताव लोएसणा। से लोएसणं च वित्तेसणं च परिन्नाए गोपहेणं गच्छेज्जा, णो महापणं गच्छेज्जा जण्ण वक्के ण अरहता इसिणा बुझतं । तंजहा
जब तक लोकैषणा है तब तक वित्तैषणा है। जब तक वित्तैषणा है तब तक लोकैषणा है। वह मुमुक्षु लोकैषणा और वित्तैषणा का परित्याग कर, गोपथ से जाये । महापथ से न जाये।
ऐसा अर्हत् याज्ञवल्क्य ऋषि बोले- तद्यथा—
Mundane yearnings and avarice are concomitants. Let an aspirant choose the creditable course of pious souls and not the tempting one common folk are prone to choose.
Said Yagyavalkya, the enlightened.
जहा कवोता य कविंजला य गावो चरन्ती
इह पातरासं । गोयरियप्पवि
एवं
मुणी णो आलवे णो वि य संजलेज्जा ।। 1 ॥
1. जैसे कबूतर, कपिंजल (गोरा) पक्षी और गाय प्रातः काल भोजन (चरने) के लिए भ्रमण करते हैं इसी प्रकार मुनि गोचरी के लिए भ्रमण करे। गोचरी के लिए भ्रमण करता हुआ मुनि न किसी के साथ संभाषण करे और न किसी पर कुपित होवे ।
1. As a pigeon and cow roam about each morning, to seek meals, so should a hermit do. He should, during this course, neither converse nor be angry.
पंचवणीमकसुद्धं, जो भिक्खं एसणाए एसेज्जा । तस्स सुद्धा लाभा, हणणाए विप्पमुक्कदोसस्स ।।2।।
2. जो दोषप्रमुक्त मुनि है वह पांच प्रकार के बनीपकों / याचकों- -1. कृपण,
2. दीनहीन, 3. ब्राह्मण, 4. कुत्ता और 5. श्रमणों का बाधक न बनता हुआ सम्यक् प्रकार से अन्वेषण करता हुआ भिक्षा (गोचरी) ग्रहण करता है उसे कर्म-नाश का लाभ सुलभ है।
12. याज्ञवल्कीय अध्ययन 287