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2. Like a riderless elephant and reinless steed, man indulges in wantonness without the discipline of knowledge.
णावा अकण्णधारा व, सागरे वायुणेरिता । चवला धावते णावा, सभावाओ अकोविया ॥3॥
3. नाविक रहित नौका वायु से प्रेरित होकर समुद्र में चपलता से दौड़ती है अर्थात् दिशाज्ञानरहित भटकती रहती है, उसी नौका के समान अज्ञानी मनुष्य भी स्वभाव से संसार-समुद्र में भटकते रहते हैं।
3. As does a rudderless boat, a myopic individual keeps wandering this ocean-like world.
णरे ।
मुक्कं पुप्फं व आगासे, णिराधारे तु से दढसम्बणिबद्धे तु विहरे बलवं विहिं ॥ 14 ॥
4. निराधार आकाश में छोड़े हुए पुष्प के समान, दृढ़ रस्सी से बद्ध उस मानव के लिए विधि (भाग्य) ही बलवान है।
4. Providence alone can save such a hopeless being who resembles a flower tightly bound and then floated in the windy sky. सुत्तमेत्तगतिं चेव गत्तकामे वि से जहा ।
एवं लद्धा वि सम्मग्गं, सभावतो अकोविते ।। 5 ।।
5. जिस प्रकार गमन करने की इच्छा होने पर भी वह सूत्र (रस्सी) से बद्ध होने के कारण गमन नहीं कर सकता, उसी प्रकार स्वभाव से अज्ञानी पुरुष सम्यक् मार्ग प्राप्त करके भी (कर्म रस्सी से जकड़ा होने के कारण ) लक्ष्य को प्राप्त नहीं
कर सकता।
5. The tie keeps the flower bound. Similarly an indiscreet being can hardly move towards the attainment of his target notwithstanding the urge to do so.
जं तु परं णवएहिं, अंबरे वा दढसुत्तणिबद्धे त्ति, विहरे बलव
विहंगमे । विहिं । | 6 ||
6. जब दूसरे को आकाश में नवीन (स्वतन्त्र) देखता है और पक्षी को स्वतन्त्र उड़ानें भरते देखता है, तब स्वयं को दृढ़ रस्सी से आबद्ध देखता है। ऐसे मानव के लिये विधि ही बलवान है।
6. His tethered state arouses despair in him while he witnesses freely soaring birds in the sky. Such the destiny of
these wretched beings.
262 इसिभासियाई सुत्ताई