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________________ न भी माना जाये, तो भी यह स्पष्ट है कि यह ग्रन्थ उनकी अनेक गाथाओं को अपने में समाहित करता है। ___ऋषिमण्डल' के नाम से आज अनेक रचनाएँ उपलब्ध हैं। इनमें कुछ संस्कृत में और कुछ प्राकृत में हैं। इनकी सूचना हमें खम्भात, पाटन और जैसलमेर भण्डारों की हस्तप्रतों की सूचियों एवं जिनरत्नकोश से मिलती है। किन्तु, प्रस्तुत विवेचन के प्रसंग में ऋषिमण्डल से हमारा तात्पर्य प्राकृत भाषा में उपलब्ध तथा सामान्यतया धर्मघोषसूरि की रचना माने जाने वाले इसिमण्डल को तपागच्छीय धर्मघोषसूरि की रचना माना है, जो चौदहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुए हैं। किन्तु, इसे निर्विवाद रूप से स्वीकार नहीं किया गया है। इसके अनेक कारण हैं___ 1. खरतर गच्छ, तपा गच्छ, अंचल गच्छ और उपकेश गच्छ आदि सभी में धर्मघोषसरि नामक आचार्यों के होने की सूचना पट्टावलियों से प्राप्त होती है। ऋषिमण्डल की अन्तिम प्रशस्ति-गाथा में 'सिरिधम्मघोसं' मात्र इतना उल्लेख है। अतः इस आधार पर यह निश्चित करना कठिन है कि ये धर्मघोष किस गच्छ के हैं और कब हुए हैं? 2. जैसलमेर और खम्भात के भण्डारों में इसिमण्डल प्रकरण की प्राचीन प्रतियाँ उपलब्ध होती हैं। इनमें ऋषिमण्डल प्रकरण की वृत्ति सहित सबसे प्राचीन ताड़पत्रीय प्रति जैसलमेर भण्डार में मिलती है। इस प्रति का लेखनकाल विक्रम 1380 उल्लिखित है, अतः रचना तो इसके भी पूर्व में हुई होगी। तपागच्छ की पट्टावलियों के अनुसार तपागच्छीय धर्मघोषसूरि का समय वि. सं. 1302 से 1357 माना जाता है। यदि यह उनके जीवन के उत्तरार्ध की रचना है तो मात्र 23 वर्षों में उस पर वृत्ति लिखा जाना और उसकी प्रतिलिपियाँ हो जाना सम्भव प्रतीत नहीं होता है। इसी आधार पर निर्णयसागर प्रेस से मुद्रित श्री ऋषिमण्डल प्रकरण (वृत्तियुक्त) की भूमिका (पृ. 2) में विजयोमंगसूरि ने इसे तपागच्छीय धर्मघोषसूरि की रचना मानने पर मूल ग्रन्थकार की अपेक्षा व्याख्याकार की प्राचीनता सिद्ध होने की सम्भावना व्यक्त की है। उनकी दृष्टि में यह विधिपक्ष अंचलगच्छनायक जयसिंहसूरि के पट्टधर धर्मघोषसूरि की रचना होने की सम्भावना है। इनका काल वि.सं. 1208 से 1268 माना गया है। ___ 3. ऋषिमण्डल (इसिमण्डल) को धर्मघोषसूरि की रचना मानने में सबसे बाधक प्रमाण यह है कि आचारांग-चूर्णि में 'इसिमण्डलत्थू' का उल्लेख है। अतः इतना निश्चित है कि आचारांग-चूर्णिकार के समक्ष उस नाम का कोई ऋषिभाषित : एक अध्ययन 109
SR No.006236
Book TitleRushibhashit Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Sagarmal Jain, Kalanath Shastri, Dineshchandra Sharma
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2016
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size33 MB
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