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________________ आमुख डा० हरिवंश कोछड़ की शिक्षा प्रथम गुरुकुल कांगड़ी ( हरिद्वार ) में हुई । उसके उपरान्त इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की बी० ए० की उपाधि सम्मानपूर्वक प्राप्त की । एम० ए० की पढ़ाई के लिए आप प्रयाग आए और १९३५ में संस्कृत विषय लेकर यह उपाधि भी आपने प्रथम श्रेणी में ली । उसके बाद प्रयाग, गोरखपुर, दिल्ली और नैनीताल में आप अध्यापन कार्य करते रहे हैं आपने हिन्दी में भी कई वर्ष पहले एम० ए० कर लिया था । । डा. कोछड़ स्वभाव से मृदु, मितभाषी और विनयशील हैं । भारतीय संस्कृति के 'सभेय युवा' का आदर्श आप में घटित होता है । अध्यापक को सदा अध्ययनशील होना चाहिए इसको आपन अपन सामने रक्खा है । प्रस्तुत ग्रन्थ को आपने दिल्ली विश्वविद्यालय की पी-एच० डी० उपाधि के लिए निबन्ध स्वरूप लिखा था । आपके परीक्षकों ने इसकी प्रशंसा की थी । प्रसन्नता की बात है कि यह प्रकाशित हो रहा है । इस ग्रन्थ में अपभ्रंश भाषा और साहित्य का विशद वर्णन किया गया है । भाषासम्बन्धी सामग्री अन्यत्र भी सुलभ है पर साहित्य-सम्बन्धी सामग्री अब भी अधिकांश में बिखरी हुई और दुष्प्राप्य ह । इस ग्रन्थ के पढ़ने से पाठक को मालूम होगा कि यह साहित्य भारतीय परम्परा की एक ऐसी कड़ी है जिसको पकड़े बिना वर्तमान आर्य भाषाओं का साहित्य ठीक स्वरूप में नहीं समझा जा सकता । इसके अतिरिक्त इस साहित्य में उच्च वर्ग का उतना चित्रण नहीं है जितना मध्यम श्रेणी के लोगों का । एक प्रकार से यह भी कह सकते हैं कि यह अपने समय के समाज का सच्चा चित्र ह । इस कारण इसका विवेचन उपादेय था । लेखक ने आवश्यक परिशिष्ट देकर इसको और भी उपयोगी बना दिया है । विश्वास है कि विद्वत्समाज इस ग्रन्थ-रत्न का आदर करेगा । शुभं भूयात् । बाबूराम सक्सेना अध्यक्ष संस्कृत-विभाग प्रयाग विश्वविद्यालव
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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