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________________ अपभ्रंश-साहित्य परिउ में उपलब्ध होता है। पउन चरिउ पांच कांडों में विभक्त है-विद्याधर कांड, अयोध्या कांड, सुन्दरकांड, युद्ध कांड और उत्तर कांड। पहले कांड में २०, दूसरे में २२, तीसरे में १४, चीये में २१ और पांचवें में १३ । इस प्रकार कुल ९० सन्धियाँ है। कवि रामकथा वर्णन में प्राचीन रविषेण की कथा से प्रभावित हुआ है। - विद्याधर कांड में सन्धि की समाप्ति कहीं केवल संख्या से सूचित की गई है और कहीं पर्व शब्द से। पूरे कांड की समाप्ति पर कवि ने बीस संधियों के स्थान पर "बीसहिं आसासएहि" लिख कर संन्धियों के लिये आश्वास शब्द का प्रयोग किया है। विद्याधर कांड के पश्चात् अयोध्या कांड में कहीं कहीं सन्धि शब्द का उल्लेख मिलता है । अन्यथा संधि की समाप्ति केवल संख्या से ही कर दी गई है। इस के पश्चात् कहीं कहीं संधि के लिये सग्ग (सर्ग) शब्द का भी प्रयोग मिलता है। अंथ की समाप्ति "णवतिमो सग्गो" से की गई है। इस से प्रतीत होता है कि स्वयंभू के समय सर्गसमाप्ति सूचक 'सन्धि' शब्द अपभ्रंश काव्यों के लिये रूढ़ न हो पाया था। संस्कृत काव्यों के 'पर्व' और 'सर्ग' शब्दों के साथ साथ प्राकृत काव्यों के आश्वास' शब्द का प्रयोग भी 'संघि' के लिये चल रहा था। प्रत्येक संधि की समाप्ति पर स्वयंभू ने 'सयंभुभवलेण', 'सयंभुंजतउ' इत्यादि शब्दों द्वारा अपने नाम का उल्लेख किया है। सिरि-विज्जाहर-को संपीमो हुंति बीस परिमाणं । उमा कंडमि तहा बावीस मुणेह गणणाए । चउबह सुन्दर कंडे एक्काहिय बीस जुज्म कंडेय। उत्तर कंडे तेरह संघीओ गवइ सव्वाउ ॥छ। पउम चरिउ अन्तिम प्रशस्ति २. पुणु रवि सेणायरिय-पसाएं, बुद्धिए अवगाहिय कहराएं। प०प० १.३ १३वों सन्धि की समाप्ति३. इय एस्य पउम चरिए, धणंजयासिस सयंभुएव कए, कइलासुबरण मिणं तेरसमं साहियं पव्वं ॥ १८वीं सन्धि की समाप्तिइय राम चरिए धणंजयासिय सयंभुएव कए, पवर्णजणा-विवाहो अट्टारहमें हर्म पग्वं ॥ ४. इय विज्जाहर कंड, घोसहि असासएहि मे सिट्ठ। एहि उज्मा कंड, साहिज्जं तं निसामेह ॥
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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