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अपभ्रंश-साहित्य
अध्ययन से यह स्पष्ट रूप से प्रतीत हो जाता है कि हिन्दी की खड़ी बोली इस युग में अपभ्रंश भाषा ही का रूपान्तर है । इसका अकाट्य प्रमाण १२ वीं शताब्दी के हेमचन्द्र द्वारा उद्धृत तथा मुनि राम सिंह के निम्नलिखित पद्य हैं-भल्ला हुआ जु मारिआ बहिणि महारा कन्तु । लज्जेजं तु वयंसिअहु भग्गा घर एन्तु ॥
जइ
( प्राकृत व्याकरण, ८.४.३५१ )
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तथा चः
विसया चिति म जीव तुहुं विसय ण भल्ला होंति । सेवंताहं वि महर वढ़ पच्छई दुक्खइं दिति ॥ अक्खर चढिया मसि मिलिया पाढंता गय खीण । एक्क ण जाणी परमकला कहिं उग्गउ कहि लीण ॥ ( पाहूड़ दोहा, पद्य संख्या, १६३, २००.) इन सब दोहों में आकारान्त पदों का रूप पाया जाता है जैसे भल्ला, मारिआ, भग्गा, चडिया, मिलिया इत्यादि । यह आकारान्त प्रयोग खड़ी बोली का विशेष लक्षण है । यह बोली दिल्ली प्रान्त में अपभ्रंश काल से प्रचलित रही है । परिस्थिति इस प्रकार है कि मुगल शासकों की राजधानी दिल्ली की खड़ी बोली को फारसी अरबी के शब्दों के सम्मिश्रण से उर्दू का स्वरूप दिया गया। यदि इन परदेशी शब्दों को खड़ी बोली से अलग कर दिया जाय और उनके स्थान में स्वदेशी तद्भव अथवा तत्सम शब्दों का प्रयोग जो पहिले से चला आ रहा है, पुनः प्रचलित किया जाय तो खड़ी बोली का स्वाभाविक रूप निखर आयगा ।
किसी भाषा के कुल का सम्बन्ध उसकी केवल शब्दावली से नहीं किया जा सकता । शब्द तो उधार भी लिये जा सकते हैं। जैसे हिन्दी की खड़ी बोली ने फारसी अरबी शब्दों को अपने में सम्मिलित करके उर्दू का रूप धारण किया । किसी भाषा के कुलसाम्य का निर्णय उस भाषा की पद-योजना अथवा वाक्य- विन्यास से होता है । खड़ी बोली का यह साम्य अपभ्रंश के आकारान्त प्रयोगों से स्पष्ट है । सारांश यह है कि उर्दू तथा हिन्दी दोनों ही अपभ्रंश के ऋणी हैं । इसलिए यह कहना सर्वथा निर्मूल है कि हिन्दी की खड़ी बोली उर्दू से निकली । तथ्य तो यह है कि उर्दू, हिन्दी की खड़ी बोली से उत्पन्न हुई है । खड़ी बोली जिसको हम नागरी भाषा भी कहते हैं प्राचीन नागर अपभ्रंश से उत्पन्न हुई दिखाई देती है । दिल्ली नगर की भाषा होने के कारण कदाचित् यह अपभ्रंश नागर अपभ्रंश के नाम से प्रसिद्ध हुई हो । संभव है कि नगर की भाषा होने के कारण यह भाषा जिसे हम खड़ी बोली कहते हैं कदाचित् उस समय की खरी बोली हो । निष्कर्ष यह है कि यह खड़ी बोली अथवा खरी बोली नागर अपभ्रंश की सन्तति है, जो अखण्ड रूप से प्रवाहित होती हुई हमारे पास आधुनिक हिन्दी के रूप में पहुँचकर अब राष्ट्रभाषा के रूप में सिंहासनारूढ़ है । हिन्दी भाषा का यह श्रेय बस्तुतः इसकी जननी अपभ्रंश को ही प्राप्त है ।