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________________ अपभ्रंश और हिन्दी २३ उद्धरणों को रूप में आई चाहे किसी और कारण से किन्तु यह प्रवृत्ति स्पष्ट है और अपभ्रंश के तद्भव शब्दों के स्थान पर तत्सम शब्दों के प्रयोग से अपभ्रंश भाषा के स्पष्टतया हिन्दी में परिवर्तित किया जा सकता है । उदाहरण के लिएसो सव संकर विरहु सो, सो रुद्दवि सो बुद्ध । सो जिगु ईस बंभु सो, सो श्रणंतु सो सिद्ध ॥ योगसार १०५ · इस दोहे का हिन्दी रूप होगा सो शिव शंकर विष्णु सो, सो रुद्रउ सो बुद्ध । सो जिन ईश्वर ब्रह्म सो, सो अनंत सो सिद्ध ॥ अनेक अपभ्रंश पद्य, जो अपभ्रंश ग्रंथों में मिलते हैं, परवर्ती हिन्दी ग्रंथों में भी कुछ परिवर्तित रूप में पाये जाते हैं । इन से दोनों भाषाओं की मध्यवर्ती श्रृंखला का रूप देखा जा सकता है । उदाहरण के लिए कुछ पद्य नीचे दिये जाते हैंवायसु उड्डावन्तिए पिउ दिट्ठउ सहसति । श्रद्धा वलया महिहि गय श्रद्धा फुट्ट तड़त्ति ॥ हेमचन्द्र प्राकृत व्याकरण, ८.४.३५२ इसी पद्य का उत्तरकाल में राजपूताने में निम्नलिखित रूप हो गयाकाग उड़ावरण जांवती पिय दीठो सहसत्ति । श्राघी चूड़ी काग गल प्राधी टूट तडिति ॥ इसी प्रकार हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण (८.४.३१५) में एक दोहा इस प्रकार F पुतेँ जाएँ कवर गुण अवगुरण कवरण मुएरण । जा वप्पी की भुंहडी चम्पिज्जइ प्रवरेण ॥ इसका परिवर्तित रूप निम्नलिखित प्रकार से दिखाई देता है— बेटा जायाँ कवरण गुरण अवगुण कवरण घियेण । जो ऊभाँ घर परणी गंजीज अवरेण ॥ મ इसी प्रकार हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण ( ८.४.४३६ ) में एक दोहा निम्नलिखित रूप में उद्धृत मिलता है बाह - बिछोडवि जाहि तुह, हउं तेवइँ को दोसु । हिश्रय-ट्टिउ जइ नीसरहि, जारगउं मुंज सरोसु ॥ अर्थात हे मुँज ! तुम बाँह छुड़ाकर जा रहे हो, मैं तुम्हें क्या दोष त ? हे मुंज ! में तुम्हें तब कुद्ध समझेंगी जब हृदय स्थित तुम निकल सको । १. इस प्रकार के अन्य उद्धरणों के लिए देखिए राहुल सांकृत्यायन, हिंदी काव्यधारा, प्रयाग । २. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी - प्राचीन हिन्दी, नागरी प्रचारिणी सभा काशी, संवत् २००५, पृष्ठ १५-१६ से उद्धृत ।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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