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सोलहवाँ अध्याय एक तुलनात्मक विवेचन
संस्कृत-प्रबन्ध-काव्य अधिकतर रामायण, महाभारत, किसी पौराणिक उपाख्यान या किसी राजा के चरित्र को आधार मान कर ही लिखे गये हैं । जैनाचार्यों ने संस्कृत में कुछ ऐसे भी प्रबन्धकाव्यों की रचना की जिनमें किसी जैन तीर्थंकर के चरित्र का वर्णन किया । प्राकृत में भी यही परम्परा चलती हुई दिखाई देती है । 'सेतुबन्ध' या 'रावण वध' रामकथा के ऊपर आश्रित है । 'गौडवहो' प्रधान रूप से कन्नौज के राजा यशोवर्मा के चरित्र का वर्णन है । संस्कृत और प्राकृत काव्यों में जो भी विषय चुना गया उसका काव्यमय भाषा में कवि ने वर्णन किया । उस वर्णन में धार्मिक उपदेश भावना का विचार नहीं दिखाई देता ।
जैसा कि ऊपर निर्देश किया जा चुका है अपभ्रंश के काव्यों का वर्णनीय विषय जैनधर्मानुकूल रामकथा या कृष्णकथा के अतिरिक्त जैनधर्मानुगत अनेक तीर्थंकरों और महापुरुषों का चरित वर्णन है । इसके अतिरिक्त लौकिक जीवन से संबद्ध विषय या प्रेमकथा भी अपभ्रंश काव्य का विषय हुआ । विषय चाहे कोई भी हुआ सब धार्मिक आवरण से आच्छन्न रहा। इन प्रबन्ध काव्यों में इस धार्मिक वातावरण के कारण कुछ नीरस एकरूपता आ गई ।
विषय विस्तार की दृष्टि से संस्कृत महाकाव्यों में ही हमें दो प्रकार के महाकाव्य दिखाई देते हैं । कुछ महाकाव्य ऐसे हैं जिनमें कथाविस्तार है, घटना - बाहुल्य है और उसके साथ-साथ प्राकृतिक दृश्यों और वर्णनों में काव्य का प्राचुर्य भी है । किन्तु ऐसे भी महाकाव्य संस्कृत में लिखे गये जिनमें कथा बहुत संक्षिप्त है किन्तु प्राकृतिक वर्णनों के विस्तार में प्रचुर- काव्यत्व दृष्टिगोचर होता है । प्राकृत में भी हमें इन दो काव्यशैलियों के दर्शन होते हैं । यदि सेतुबन्ध में रामकथा का विस्तार है और तदन्तर्गत काव्यमय वर्णनों का विधान है तो गौडवो में गौड़ राजा के वध का केवल ३-४ पद्यों में निर्देश मात्र है और काव्यमय वर्णनों का पर्याप्तरूप से स्थल-स्थल पर समावेश है ।
अपभ्रंश महाकाव्यों में भी हमें वर्ण्य विषय या कथा का पर्याप्त विस्तार मिलता है । कथा के पात्रों के अलौकिक चमत्कारों, पूर्वजन्म की कथाओं और पौराणिक उपाख्यानों के मिश्रण से कथानक का इतना अधिक विस्तार हो गया है कि उसमें कथा - सूत्र का पकड़ना भी कठिन हो जाता है । अनेक कथाओं और अवान्तर कथाओं में उलझे हुए अनेक स्थल यद्यपि सुन्दर कवित्व के भी निदर्शक हैं तथापि उनमें कवित्व प्रचुर परिमाण में प्रस्फुटित नहीं हो सका । विषय-विस्तार और कवित्व - विस्तार का संतुलन इन महाकाव्यों में नहीं