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अपभ्रंश स्फुट-साहित्य
३६५ आवत्त-सयायलु जलहि लहु गोपउ जिम्व ते नित्थरहि।
नीसेस-वसण-गण-निट्ठवणु पासनाहु जे संभरहि ॥ अर्थात् जो लोग पार्श्वनाथ का स्मरण करते हैं वे इस भयानक संसार सागर को गोपद के समान पार कर जाते हैं। ___ इन छप्पयों की भाषा, अनुप्रासमयी, समस्त और द्वित्व व्यंजन युक्त है । इसी प्रकार की भाषा उत्तरकाल में हिन्दी छप्पय पद्यों में मिलती है।
सिरि थलि भद्द फाग' यह जिन पद्म सूरि की २७ पद्यों की एक छोटी सी रचना है। जिनपद्म गुजरात वासी जैन साधु थे। उन्होंने इसकी रचना वि० सं० १२५७ के लगभग की। कृति अनेक विभागों में विभक्त है । प्रत्येक विभाग “भास" नाम से पुकारा गया है । इसी प्रकार समरा रासु में प्रत्येक विभाग का नाम “भाषा" दिया गया है। "भास" और "भाषा" पर्यायवाची शब्द हैं। "भास" या "भाषा" अनेक पद्यों के समूह से बनता है। यह भास विभाग या भाषा विभाग वैदिक काल की अनुवाक शैली का स्मरण कराता है। ____ इस ग्रंथ में प्राचीन स्थूलिभद्र कथा का उल्लेख है। स्थूलिभद्र, चातुर्मास्य में कोशा के घर में जाता है । कवि ने वर्षा का और कोशा की वेशभूषा का अतीव मधुर शब्दों में वर्णन किया है । वर्षा का वर्णन अत्यन्त सजीव है और कोशा की अंग-सुषमा का वर्णन अतीव आकर्षक है। वर्षा का वर्णन देखिये :--
झिरि मिरि झिरि मिरि झिरि मिरि ए मेहा वरिसंति । खलहल खलहल खलहल ए वाहला वहति । सबझब झबझन झबशब ए वीजुलिय सबकइ । थरहर थरहर थरहर ए विरिहिणि मणु कंपइ॥ (पृ० ३८) सीयल कोमल सुरहि वाद जिम जिम वायन्ते। माण मडप्फर माणणि य तिम तिम नाचते। जिम जिम जलभर भरिय मेह गयगंगणि मिलिया।
तिम तिम कामीतणा नयण नीरिहि झलहलिया ॥ (पृ० ३९) कोशा की वेशभूषा की छटा निम्नलिखित पद्य में झलकती है :--
लहलह लहलह लहलह ए उरि मोतियहारो। रणरण रणरण रणरण ए पगि नेउर सारो। झगमग झगमग झगमग ए कानिहि वर कुंडल। झलहल झलहल झलहल ए आभरणइं मंडल ॥ (पृ० ३९)
१. प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह, भाग १, पृ० ३८ । २. देखिये पीछे तेरहवाँ अध्याय, अपभ्रंश कथा-साहित्य, पृ० ३५२