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अपभ्रंश स्फुट-साहित्य
३६३ का पाटण भण्डार की ग्रन्थ सूची में निर्देश मिलता है।'
प्रस्तुत चर्चरी की रचना जिनदत्त सूरि ने वागड (वाग्जड) देशान्तर्गत व्याघ्रपुर नगर में विक्रम की १२वीं शताब्दी के उतराई में की। इस कृति के अतिरिक्त कवि के 'उपदेश रसायन रास' और 'काल स्वरूप कुलक' का पीछे (अध्याय नौ में) उल्लेख किया जा चुका है।
कृतिकार ने सूचित किया है कि यह कृति पढ़ (ट) मंजरी भाषा-राग में गाते हुए और नाचते हए पढ़ी जानी चाहिये । पट मंजरी-राग का निर्देश सिद्धों के अनेक पदों में भी मिलता है। पद्य व्याख्याता ने प्रथम पद्य के अन्त में निर्देश किया है कि इसका छन्द वास्तु छन्द का एक भेद, २१ मात्रा वाला कुन्द नामक छन्द है। कृतिकार जिनवल्लभ को कालिदास और वाक्पतिराज से भी बढ़ कर मानता है :
"कालियासु कइ आसि जु लोइहि वन्नियइ, ताव जाव जिणवल्लहु कइ ना अनियइ। अप्पु चित्तु परियाणहि तं पि विसुद्ध न य ते वि चित्त कइराय भणिज्जहि मुद्धनय ॥५॥
भरत बाहु बलि रास यह शालिभद्र सूरि द्वारा रचित रास-ग्रन्थ है। कवि ने प्राचीन पौराणिक कथा को लेकर ही इसकी रचना की है। ग्रन्थ की रचना वि० सं० १२४१ में हुई।
यह कथा पुष्पदन्त के महापुराण में १६ से १८ सन्धियों तक विस्तार से वर्णित है। ऋषभ के पुत्र भरत, चक्रवर्ती बन जाने पर दिग्विजय के लिये निकलते हैं। सब राजा उनके आधिपत्य को स्वीकार करते हैं किन्तु ऋषभ के पुत्र और भरत के छोटे भाई बाहुबलि उनका आधिपत्य स्वीकार नहीं करते। दोनों में युद्ध होता है। युद्ध में भरत पराजित होते हैं। विजित बाहुबलि, भरत को ही राज्य लौटा कर संसार से विरक्त हो जाते हैं।
यह वीर रस प्रधान रास ग्रन्थ है। इसकी भाषा प्राचीन गुजराती से प्रभावित है। ग्रन्थ में वस्तु, चउपई, रास, दोहा आदि छन्दों का प्रयोग हुआ है। कवि की कविता का उदाहरण देखिए :--
चलीय गयवर चलीय गयवर गुहिर गज्जंत, हुंफई हसमस हणणइं तरवरंत हय-घट्ट चल्लीय, पायल पय-भरि टलटलीय मेरु सेस-सीस मणिमउड डुल्लीय ।
१. पत्तन भांडार ग्रंथ सूची, बड़ौदा, १९३७ पृ० २६७-२६८ २. पं० लालचन्द्र भगवान् गांधी द्वारा श्री जैन धर्माभ्युदय ग्रंथमाला में अहमदाबाद
से गुजराती में प्रकाशित, वि० सं० १९९७ ।