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________________ ३४८ ___ अपभ्रंश-साहित्य __ लेखक ने सरल और सरस भाषो में अपने भावों को अभिव्यक्त करने का प्रयत्न किया है । भाषा में अनुरणनात्मक शब्दों का प्रयोग भी कवि ने किया है। जैसे घवघव घवंत बहु घग्घराई। गाइय · सरिगमपधणी सराई, मणिमय कणंतः किंकिणि सराई। फुल्ल हर भमिर महुयर उलाई, टण टण टणंत घंटाउलाई ॥ ११.२५. कवि ने भाषा को अलंकृत करने के लिये यथास्थान अलंकारों का भी प्रयोग किया है। ऊपर दिये गये उद्धरणों में उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपक के उदाहरण मिलते हैं। विरोधाभास का उदाहरण निम्नलिखित उद्धरण में देखा जा सकता है । कवि वैजयन्ती नगरी के राजा के विषय में कहता है ___ असिरीहरो वि लच्छी सणाहु । अपुरंदरो वि विवुहयणह इठ्ठ, .......। अकुमार वि जो सत्ती पयासु, वंधव परियण परिपूरियासु। अदिसागउ वि अणवरय दाणु, अदिणेसु वि उग्गपयावथाणु ॥ इसी प्रकार निम्नलिखित मुनि-वर्णन में भी विरोधाभास अलंकार दिखाई देता हैसमलु वि णिम्मलयउ, आसावसणु वि आता रहिउ, मुक्काहरणु वि तिरयण सहियउ। णिग्गंथ वि बहुगंथ परिग्गहु, बहु सीसु वि ण वुत्तु लंकाहिउ ॥ ३.१२ इस ग्रन्थ में नाना छन्दों का प्रयोग किया गया है। "साहम्मि धम्म परिक्ख सा पद्धडिय बंधि" द्वारा कवि ने स्पष्ट निर्देश किया है कि ग्रन्थ में पद्धडिया छंद की बहुलता है । इस छन्द के अतिरिक्त मदनावतार (१.१४), विलासिनी (१.१५), स्रग्विणी (१.१७), पादाकुलक (१.१९), भुजंग प्रयात (२.६, ३.८), प्रमाणिका (३.२), रणक या रजक (३.११), मत्ता (३.२१), विद्युन्माला (९.९), दोधक (१०.३) आदि छन्दों का भी प्रयोग किया गया है । छन्दों में वर्णवृत्त और मात्रिक वृत्त दोनों मिलते हैं, यदयपि अधिकता मात्रिक वृत्तों की ही है। कथा कोष श्रीचन्द्र कवि कृत ५३ सन्धियों का अप्रकाशित ग्रन्थ है। प्रत्येक सन्धि के अन्तिम पद्य में कवि का नाम निर्दिष्ट है।' कवि, कुन्द कुन्दाचार्य की परंपरा में वीरचन्द्र १. मणि सिर चन्द पउत्ते कहकोसे एत्व जण्मणाणंद इत्यादि।
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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