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________________ अपभ्रंश मुक्तक काव्य--१ २६७ अपभ्रंश मुक्तक रचनायें धार्मिक साहित्यिक (प्रेम, शृङ्गार, वीर भावादि संबन्धी विविध पद्य) जैनधर्म सम्बन्धी बौद्ध धर्म सम्बन्धी आध्यात्मिक आधिभौतिक सिद्धान्त प्रतिपादक खंडन मंडनात्मक . पहिले हम जैनधर्म सम्बन्धी धार्मिक कृतियों का विवेचन करेंगे। उनमें से भी प्रथम आध्यात्मिक कृतियों का और फिर आधिभौतिक एवं उपदेशात्मक कृतियों का। (क) आध्यात्मिक रचनायें आध्यात्मिक रचना करने वाले कवि प्रायः जैन धर्मावलम्बी ही हैं। इस प्रकार की रचनाओं में जैन धर्म का जो रूप प्रस्तुत किया गया है उसमें संकीर्णता, कट्टरता और अन्य धर्मों के प्रति विद्वेष-भावना की गन्ध नहीं। इन कवियों का लक्ष्य मनुष्य को सदाचारी बना कर उसके जीवन-स्तर को ऊँचा उठाना था। इनका हृदय उदार था। इनके हृदय की तन्त्री चिर प्राचीन करुणा की तारों से झंकृत रहती थी। इन लेखकों ने बाह्य आचार, कर्म कलाप, तीर्थयात्रा, व्रत आदि को गौण बताया और सदाचार एवं आन्तरिक शद्धि को प्रधानता दी। इन्होंने बताया कि परम तत्व इसी शरीर मन्दिर में प्राप्य है और उसी की उपासना से मानव शाश्वत सुख को प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार इन कवियों का जीवन स्वयं धर्म-प्रवण था। ये लेखक पहिले संत थे पीछे कवि। हृदय के उद्गारों की अभिव्यक्ति इनका ध्येय था। भाव प्रधान था, भाषा गौण थी। इसलिये भाषा-सौन्दर्य या काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से संभवतः इनका मूल्य आंकना अनुचित होगा। इसी प्रकार की आध्यात्मिक कृतियों का विवरण नीचे दिया जाता है। परमप्पयासु (परमात्म प्रकाश)' यह ग्रन्थ योगीन्द्राचार्य या योगीन्दु द्वारा लिखा गया है। लेखक ने ग्रन्थ में अपने १. डा० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये द्वारा संपादित, प्रकाशक सेठ मनिलाल रेवा शंकर झावेरी, परमश्रुत प्रभावक मंडल, बम्बई, १९३७ ई०
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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