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________________ अपभ्रंश-साहित्य पड़ती। अतएव भाषा-सम्बन्धी विशेषता का आदान-प्रदान निर्बाध रूप से हो सकता था। संभवतः इसी कारण विकट (विकृत ), निकट (निःकृत ) कीकट ( किंकृत) आदि शब्द वैदिक भाषा में भी प्रवेश पा गये। इन भिन्न-भिन्न परिवर्तनों के अनेक कारणों में से एक विशेष कारण भारत के उन आदिम निवासियों का प्रभाव था जो कि आर्यों की श्रेणी में प्रविष्ट हो गये थे और जिन्होंने धीरे-धीरे विजेता की भाषा को अपनाया। उन लोगों ने अपने अनेक शब्द विजेता की भाषा में मिलाये। उन्हीं लोगो के संपर्क से तत्कालीन आर्यभाषा में ध्वनि-सम्बन्धी तथा उच्चारण-सम्बन्धी परिवर्तन हो गये। आर्यभाषा के अनेक संयुक्ताक्षरों का उच्चारण भारत के आदिम निवासियों के लिए कठिन था इसलिए भाषा में उच्चारण-सम्बन्धी परिवर्तनों का होना स्वाभाविक था। ___ इस प्रकार १५०० ई० पू० से लेकर ६०० ई० पू० तक प्रथम प्राकृतों या विभाषाओं में अनेक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप गौतम बुद्ध के समय भारत में भाषा के निम्नलिखित रूपों की ओर डा० सुनीति कुमार चैटर्जी ने निर्देश किया है १. उदीच्या, मध्यदेशीया और प्राच्या रूप में तीन विभाषायें विकसित हो गई थीं। २. वैदिक सूक्तों की प्राचीन भाषा छान्दस । इसका स्वाध्याय ब्राह्मणों में अभी तक चल रहा था। छान्दस भाषा के नवीन रूप और उदीच्या विभाषा के प्राचीन रूप से विकसित भाषा। इसमें मध्यदेशीया और प्राच्या विभाषाओं के तत्त्वों का भी मिश्रण था । यही ब्राह्मणों की शिष्ट और परस्पर व्यवहार योग्य भाषा थी। इसी में वैदिक ग्रंथों के भाष्य लिखे गये। इसके अतिरिक्त कहीं-कहीं पर द्रविड़ और 'पौस्ट्रिक' विभाषाओं का भी प्रयोग होता था। गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी ने अपनी-अपनी बोलचाल की भाषाओं को अपने उपदेशों का माध्यम बनाया। उनके प्रोत्साहन से तत्कालीन प्रान्तीय भाषामों ( देशभाषाओं) का विकास द्रुतगति से प्रारम्भ हुआ। उनके विकास में एक क्रान्ति सी पैदा हो गई। भिन्न-भिन्न प्रान्तीय भाषाओं के साहित्यिक विकास का सूत्रपात हो गया। गौतम बुद्ध के समय प्राच्या विभाषा, प्राचीन छान्दस भाषा और उसके नवीन विकसित रूप से इतनी पृथक् हो गई थी कि उदीच्य से आये एक व्यक्ति के लिए प्राच्या समझना सरल न था। तत्कालीन सामाजिक अवस्था में ब्राह्मणों के कर्म-काण्ड से सामान्य जनता आकृष्ट न हो सकी। बौद्धों के प्रचार के कारण सामाजिक और साहित्यिक विकास में भी परिवर्तन हुआ। ब्राह्मणों ने अपने विचारों के प्रचार के लिए और प्राचीन रूढ़ि से प्रेम करने वाले समाज का ध्यान रखते हुए अपनी प्राचीन छान्दस या वैदिक भाषा को अपनाना ही ठीक समझा। किन्तु तत्कालीन भाषा-सम्बन्धी परिवर्तनों से ब्राह्मण
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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