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________________ अपभ्रंश-खंडकाव्य (लौकिक) चतुर्थ पल्लव में भृगी सेना प्रयाण का समाचार पूछती है। मुंग सेना का और उसके प्रयाण का वर्णन करता है। सेना के तिरहुत पहुँचने पर सुल्तान कुछ निराश हो गये। कीर्तिसिंह के प्रोत्साहन से सेना आगे बढ़ी। असलान के साथ घोर युद्ध हुआ । कीर्तिसिंह और वीरसिंह के अद्भुत पराक्रम से असलान युद्ध-भूमि से भाग गया । कीर्तिसिंह ने भागते हुए असलान पर हाथ उठाना कायरता समझी। कीर्तिसिंह विजित हुए। सुल्तान ने उनका राज्याभिषेक किया। संस्कृत पद्य में आशीर्वाद और मंगल कामना के साथ काव्य समाप्त होता है। वर्णनीय विषय-यद्यपि कीतिलता राजा कीर्तिसिंह के पराक्रम और यश का वर्णन करने की इच्छा से लिखी गई किन्तु अधिकता सुल्तान की सेना के वर्णन की और यात्रा के मार्ग के दृश्यों के वर्णन की है। प्रथम पल्लव में कीर्तिसिंह के दानशील स्वभाव और आत्माभिमान की ओर संकेत किया गया है और अन्तिम पल्लव में उनके पराक्रम की कुछ झांकी मिलती है । काव्य में वर्णनात्मकता अधिक है किन्तु वर्णनों में स्वाभाविकता है। ‘ऐतिहासिक तथ्य कल्पित घटनाओं या संभावनाओं के द्वारा धूमिल नहीं हो पाये। बीच बीच में कई स्थल काव्यात्मक वर्णन से युक्त है। वीर पुरुष का वर्णन करता हुआ कवि कहता है-- पुरिसत्तणेन पुरिसओ नहि पुरिसओ जम्ममत्तेन । जलदानेन हु जलओ नहु जलओ पुजिओ धूमो॥ सो पुरिसओ जसु मानो सो पुरिसओ जस्स अज्जने सत्ति। इअरो पुरिसाआरो पुच्छ विहूना पसू होइ॥ (कीर्तिलता, पृ० ६) अर्थात् कोई पुरुषत्व से ही पुरुष होता है जन्म-मात्र से ही पुरुष नहीं होता । मेघ तभी जलद है जब वह जलदान करे । पुंजीभूत धूम्र को जलद नहीं कहते । पुरुष वही है जिसका मान हो, जिसमें धनोपार्जन की शक्ति हो । अन्य पुरुष तो पुरुष के आकार में पुच्छविहीन पशु रूप हैं। राज गणेश्वर के वध के अनन्तर राज्य में क्रान्ति और अराजकता का वर्णन करता हुआ कवि कहता है मारन्त राए रण रोल पर मेइनि हाहासद्द हुअ । सुरराए नएर नाएर रमनि वाम नयन पफुरिअ धु॥ ठाकुर ठक भए गेल चोरें चप्परि घर लिज्झि । दास गोसाअनि गहिम धम्म गए धन्ध निमज्जिअ ॥ खले सज्जन परिभविअ कोइ नहि होइ विचारक । जाति अजाति विवाह अधम उत्तम कां पारक ॥ अक्खर रस बुज्झनिहार नहि, कइ कुल भमि भिक्खारि भउँ। तिरहृत्ति तिरोहित सब्ब गुणे रा गणेस जवे सग्ग गउँ॥ (वही पृष्ठ १७-१८)
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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