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अपभ्रंश-खण्डकाव्य (लौकिक)
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कार्तिक में दिवाली आई । लोगों ने घर सजाए , दीवे जलाए किन्तु विरहिणी का हृदय उसी प्रकार दुःखी है। शरत् का सारा सौन्दर्य उसके प्रीतम को घर न ला सका। वह आश्चर्य चकित हो कहती है
"किं तहि देसि णहु फुरइ जुन्ह णिसि णिम्मल चंदह, अह कलरउ न कुणंति हंस फलसेवि रविंदह । अह पायउ णहु पढइ कोइ सुललिय पुण राइण, अह पंचउ णहु कुणइ कोई कावालिय भाइण । महमहइ अहव पच्चूसि पहु ओससिउ घणु कुसुम भरु । अह मुणिउ पहिय ! अणरसिउ पिउ
सरइ समइ जु न सरइ घर ॥' अर्थात् क्या उस देश में रात को शुभ्र चन्द्र की चन्द्रिका नहीं छिटकती ? क्या कमल सेवी हंस कलरव नहीं करते ? क्या वहाँ कोई सुललित प्राकृत राग नहीं गाता? क्या वहाँ कोकिल पंचम स्वर में आलाप नहीं करती? क्या प्रातः काल सूय से विकसित और उच्छ्वासित कुसुम समृह नहीं महकते ? अथवा हे पथिक ! ऐसा प्रतीत होता है कि मेरा प्रियतम अरसिक है जो शरत्समय में भी घर नहीं लौटा।
शरत् के अनन्तर हेमन्त ऋतु आती है। चारों ओर शीत के प्रभाव से कोहरा और पाला दिखाई देता है किन्तु
जलिउ पहिय सव्वंगु विरह अग्गिण तडयडवि" विरहिणी का सारा शरीर विरहाग्नि से तप्त है। . ___इसी प्रकार हेमन्त आई और चली गई किन्तु प्रियतम घर न आया । हेमन्त के अनन्तर वसन्त अपनी पूर्ण संपत्ति के साथ विकसित हो उठा। वसन्त के उल्लास, उसकी पुष्प-समृद्धि, वर्ण-सौन्दर्य आदि का कवि ने सुन्दर वर्णन प्रस्तुत किया है (३.२००-२२१)
ऋतु-वर्णन स्वाभाविक है और कवि की निरीक्षण शक्ति का परिचायक है। प्रत्येक ऋतु में प्राप्य और दृश्यमान वस्तुओं का वर्णन मिलता ह । इस प्रसंग में ग्राम्यजीवन का चित्र भी स्थान-स्थान पर कवि ने अंकित किया है। वर्षा ऋतु में पथिक हाथ में जूते उठा कर जल पार करते हैं ( ३.१४१ ) दीपावली के अवसर पर आँखों में काजल डाले और गाढ़े रंग के वस्त्र पहने ग्राम्यनारियाँ भी कवि की दृष्टि से ओझल न हो सकी ( ३.१७६१७७ ) । शिशिर में थोड़ा-सा औटा कर सुगन्धित ईख का रस पीते हुए लोग भी दिखाई देते हैं। इस प्रकार यह ऋतु-वर्णन उद्दीपन रूम में प्रयुक्त हुआ हुआ भी स्वाभाविक और आकर्षक है । वर्णन में हृदय की आभ्यन्तर स्थिति का बाह्य प्रकृति में भी कहीं कहीं दर्शन हो जाता है। शरत् में क्षीण जलधारा के साथ साथ विरहिणी भी क्षीण हो जाती है।
'जायसी की भांति अद्दहमाण के सादृश्यमूलक अलंकार और बाह्यवस्तु-निरूपक
१. जुन्ह--ज्योत्स्ना, चन्द्रिका । रविदह-अरविन्द के । राइण--राग से।