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________________ २२२ अपभ्रंश-साहित्य चरिउ की अन्तिम प्रशस्ति में दी हुई गाथाओं से भी यही मत समीचीन प्रतीत होता है।' प्रो० हीरालाल जैन ने ग्रंथ का काल ईसा की १२वीं सदी का पूर्वार्द्ध माना है। पं० परमानन्द जैन ने ग्रंथ का रचना काल विक्रम की १३वीं शताब्दी का प्रारम्भिक भाग माना है। कवि ने जैन सम्प्रदायानुसार २४ कामदेवों में से २१वें कामदेव कृष्ण-पुत्र प्रद्युम्न के चरित्र का १५ सन्धियों में वर्णन किया है । रुक्मिणी से उत्पन्न होते ही प्रद्युम्न को, पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार, एक राक्षस उठा कर ले जाता है । प्रद्युम्न वहीं बड़े होते हैं और फिर बारह वर्ष के बाद कृष्ण से आकर मिलते हैं। ग्रंथ का आरम्भ निम्नलिखित पद्य से हुआ है-- स्वस्ति। ॐ नमो वीत रागाय । खम दम जम निलयहो, तिहुयणतिलयहो, वियलिय कम्म कलंकहो। थुइ करमि स सत्तिए, अइणिरु भत्तिए, हरि कुल गयण ससंकहो ॥ इसके अनन्तर कवि ने जिन नाथ वन्दन, सरस्वती वन्दन और आत्म विनय प्रदर्शित किया है तं सुणेवि कवि सिद्ध जंपए, मझु माए णिरु हियउ कंपए। कव्व बुद्धि चितंतु लज्जिर, तक्क छंद लक्खण विवज्जिउ । णवि समासु णविहत्तिकारउं, संधि सुत्त गंथहं असारउं । कव्वु कोवि ण कयावि दिट्ठऊ, महु णिघंटु केण वि ण सिद्धऊ । तेण वहिणि चितंतु अछमि, खुज्जहो वि तालफलु वंछमि । अंधु हो वि णवणट्ट पिचिरो, गेय सुणणि वहिरो वि इछिरो। १.३ कवि ने परंपरागत दुर्जन स्मरण भी किया है ता सिद्ध भणई महु गरुय सकं, दुज्जणहु ण छुट्टइ रवि मयंक । तहि पुणु अम्हारिस कवण मत्त, ण मुहिं जि कयावि कवित्त वत्त । १.४ कवि की काव्य शैली का उदाहरण देखिये । कवि परिसंख्यालंकार द्वारा सौराष्ट्र देश का वर्णन करता है मय संगु करिणि जहिं वेए कंडु, खरदंडु सरोरुहु ससि सखंडु। ___ जहिं कव्वे वंशु विग्गहु सरीरु, धम्माणु रत्तु जणु पाव भीर। १. संभवइ बहु विग्धं, मणुवाणं सेयमग लग्गाण । मा होहि सिढिलो विरयहि कपवं तरंतो वि ॥ सुहअ सुहण वियाणवि, चित्तं धीर वि ते अए धण्णा । पर कज्जं पर कव्वं, विहडं ते जेंहि उद्धरियं ॥ २. नागपुर युनिवर्सिटी जर्नल, सन् १९४२, पृ० ८२-८३ । ३. अनेकान्त वर्ष ८, किरण १०-११, पृ० ३९३.
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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