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________________ १८१ अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक) करकंड चरिउ' करकंड चरिउ १० संधियों में रचा हुआ एक काव्य है । इसके रचयिता का नाम मुनि कनकामर है । प्रत्येक संधि के अन्त में इनका नाम लिखा मिलता है। कवि आरम्भ में (१. २. १.) अपने गुरु पंडित मंगलदेव के चरणों का स्मरण करता है । अन्तिम संधि (१०. २८. ३) में भी कवि ने अपने को बुध मंगलदेव का शिष्य कहा है। इसी स्थल पर कवि ने अपने विषय में थोड़ा सा और परिचय दिया है। कवि ब्राह्मण वंश के चन्द्र ऋषि गोत्र में उत्पन्न हुआ था और वैराग्य ले दिगम्बर साधु हो गया था । देशाटन . करते करते आसाइय नगरी में पहुँच कर इन्होंने ग्रंथ रचना की (क०च० १०.२८. १-४) , अंतिम संधि के अन्तिम कडवक में कवि ने अपने आश्रयदाता का भी कुछ परिचय दिया है (वही १०. २९. २-१३) किन्तु उसके नाम का कहीं निर्देश नहीं किया। कवि ने ग्रंथ के निर्माण का समय भी कहीं सूचित नहीं किया । ग्रंथकार ने इसमें सिद्धसेण, सुसमंत भद्द, अकलंक देव, जयदेव, सयंभु और पुप्फयंत (पुष्पदन्त) का उल्लेख किया (वही १. २. ८-९) । पुष्पदन्त ने अपना महापुराण सन् ९६५ ई० में समाप्त किया अतः कनकामर इस काल के पश्चात् ही मानने पड़ेंगे। प्रो० हीरालाल चन ने इस ग्रंथ का समय सन् १०६५ ई० के लगभग स्वीकार किया है और आसाइय मगरी को कहीं बुन्देलखंड प्रान्त में माना है (वही पृ० ४)। ___कवि ने यह ग्रंथ जैन धर्म की दृष्टि से लिखा है किन्तु जैन धर्म के गंभीर तत्वों का विश्लेषण कवि का लक्ष्य न था। जैन धर्म के सदाचारमय जीवन का दिग्दर्शन ही कवि को अभिप्रेत था। उपवास, व्रत, देशाटन, रात्रिभोजन निषेध आदि अनेक सर्वसाधारण अंगों का उल्लेख कवि ने ग्रंथ में किया है । हिन्दुओं के देवताओं का भी ग्रंथ में उल्लेख मिलता है । महाभारत के पात्र अज्जुण--अर्जुन का उल्लेख भी कवि ने किया है (क. च. १०.२२.७)। • ग्रंथ में अन्य धर्मों के तत्वों का खंडन नहीं मिलता इससे कवि के हृदय में धार्मिक संकीर्णता के अभाव की सूचना मिलती है। ग्रंथ सर्व-साधारण जनता के लिए लिखा गया प्रतीत होता है और संभवतः जैन धर्म के साधारण अंगों का सर्व-साधारण में प्रचार ही कवि का लक्ष्य था। कथानक--इस ग्रंथ में करकंडु महाराज का चरित्र-वर्णन किया गया है। संक्षेप में कथा इस प्रकार है । अंग देश की चम्पा पुरी में धाड़ी वाहन राजा राज्य करते थे। एक बार राजा कुसुमपुर गये और एक युवती पर मुग्ध हो गये । युवती के संरक्षक माली से यह जानकर कि वह राजपुत्री पद्मावती है परन्तु जन्म समय के अपशकुन के विचार से १. प्रो० हीरालाल जैन द्वारा संपादित, कारंजा जैन -ग्रंथमाला, बरार, १९३४ ई. २. बलभद्र, हरि ९.५.५, बलभद्र, यम, वरुण ९.७.८-९; वलराव, गरायण १०.२५.३; हरि, हर, बम्ह, पुरंदर १०.८.९-१०.
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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