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अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक)
रेहति रणगणे रेहति रणंगणि चमर रेहंति रणंगणे वर रेहहि रणे घोलिर चवल हार । णं रेहहि रणे महझं सविब्भमाई । णं
चउत्तुरंग । णं सरि तरलिय चंचल तरंग । विमल । णं सरि वलय चलवलिय धवल । रहंग । णं सरसरंत सुंदर रहंग । सरिउमज्जिरेणेक्कहार । सरिमण मोहरं विब्भमाई ।
सज्झताई ।
हहि रणे करि यर द्धयाई । णं सरि करि मयरई उद्धयाई । रेहहि रणे कयसज्झ सज्झ साइं । णं सरि वियसंत रेहहि रणे पंडुर पुंडरीय । णं सरि पप्फुलिय रेहहिं रणम्मि रतुप्पलाई । णं सरि वियसिय रेहहि रणे विलसिय रायहंस । णं सरिहे सलक्खण
डुण कट क्रियट खुखुंद खंद तक्खे कुंडि डु भ्रां डुरट मट किटि क्रिय क्रिय क्रियात्र
धोग्दि डुधाग्दि
३६.२
भाषा में अगुरणनात्मक शब्दों का प्रयोग किया गया है। निम्नलिखित उद्धरण में युद्ध में प्रयुक्त अनेक वाद्यध्वनियों का संकेत मिलता है-
क्रियटर ऋट खुत्र । खुि
हथ हप्पु खु खुखु खु क्रिय क्रिय ।
थरि थरि थरि रि थरि तूय तूय तखु तख तखु । तखु देत खंदे बंद खंदक्खु । किरिरिकिरिरि किरि यरि किरि रार्वाहि ।
झं झं झिणि किटि झिणि किटि भावहं ।
ठहुं ठहुं ठहुं ठहुं ठग डुगे डुगे डंगहि । झिं शिशि त्रां त्रां संजोगहिं ।
पंडरीय |
रत्तुप्पलाई ।
रायहंस ।
३५.१२
ग्रन्थ की भाषा में अनुप्रास, यमक, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षादि अलंकारों का प्रयोग प्रचुरता से मिलता है । निम्नलिखित छंद में सुन्दर कल्पना की गई है—
कामललिया-
रामण राम राय कुरु पंडव कामिणि कारणे रणे । घुली रव छलेण अवकित्ति व धाइव दिम्मुहाणणे ॥
च
1
३५.१
ग्रन्थकार ने ४६ वीं सन्धि के १५ वें कडवक में निम्नलिखित उद्धरण दिया है-
उक्तं
१७९
संता भोय जि परिहरइ, तहो कंतहो वलि
सो दद्दवेण जि मंडियउ, जासु खडिल्लउ
कीसु ।
सीसु ॥