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________________ १७२ अपभ्रंश - साहित्य है । अप्रस्तुत योजना में कवि ने प्रायः मूर्त उपमानों का ही प्रयोग किया है । उपमानों के चयन में कवि की दृष्टि कहीं-कहीं ग्राम्य उपभा में कहीं-कहीं हलकी-सी उपदेश भावना की उदाहरणार्थ काहे वि रमणिए पिय दिट्ठि पत्त ण चल णं कद्दमे ढोरि खुत्त । ७.१७ पर पड़ी किसी रमणी की दृष्टि इस प्रकार आगे न बढ़ी, जिस प्रकार र्थात् कीचड़ में फसा पशु | दृश्यों की ओर भी गई है । ओर भी ध्यान चला जाता है। कुमुय संड दुज्जण सम दरिसिय, मित्त विणासणे वि जें वियसिय । ८.१७ अर्थात् कुमुद समूह दुर्जन के समान दिखाई दिया जो मित्र सूर्य के विनाश हो जाने पर भी विकसित था । अग्गए णिउ पच्छए दिव्वु जाइ, जीवहु पुव्व क्किउ कम्मु गाइ । ९.१७ ग्रन्थ की भाषा में अनुरणनात्मक शब्दों का प्रयोग भी मिलता है । घुमु धुमिय मद्दलई कणकणिय कंसाई, दुमु दुमिय गंभीर दुंदुहि विसेसाई । रण झणिय तालाई झं झं सढुक्काई, डम डमिय डमरु यइ दंडंत डक्काई । थर थरिरि थर थरि रि कर डोह सद्दाई, झिझिझित शिक्किरि सुहद्दाई । थडगेगे थगे डुगेगे तखि तक्खि पडहाई, किरि किरिरि किरि किरिरि तटर कुंदलडहाई कर मिलण झिमि झिमिय झल्लरि वियंभाई, रुजंत रुंजाई भंभंत भंभाई । ७.६ भिन्न-भिन्न अनुरणनात्मक शब्दों के प्रयोग द्वारा कवि ने वसन्तोत्सव में बजते हुए विभिन्न वाद्य यन्त्रों की ध्वनियों का अंकन किया है । सुभाषित - - कवि ने अनेक सुभाषितों और मुहावरों के प्रयोग से भाषा को रोचक बनाया है 'करे कंकणु कि आरिसे दीसइ' । ७.२ अर्थात् हाथ कंगन को आरसी क्या ? 'जं जसु रुच्चइ तं तसु भल्लउ । ७.५ अर्थात् जो जिसे अच्छा लगे वही उसके लिए भला । 'अह ण कवणु णेहें संताविउ' । ७.२ अर्थात् प्रेम से कौन दुःखित नहीं होता ? 'एक्के हत्थे ताल कि वज्जद, 'कि मरेवि पंचमु गाइज्जइ । ८.३ अर्थात् एक हाथ से ताली कैसे बजाई जा सकती है ? क्या मरण पर भी पंचम गाया जा सकता है !
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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