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________________ अपभ्रंश-खंडकाव्य (धार्मिक) १५१ चाहते हैं। माता समझाती है । इसी समय सागर दत्त श्रेष्ठी का भेजा मनुष्य आकर जम्बू का विवाह निश्चित करता है। श्रेष्ठी की कमल-श्री, कनक-श्री, विनय-श्री और रूप-श्री नामक चार कन्याओं से जम्बू का विवाह होता है। वह उनके साथ संभोग में लीन हो जाता है (८)। __ जंबू के हृदय में फिर वैराग्य जग पड़ता है। उसकी पत्नियाँ वैराग्य विरोधी कथाएँ कहती हैं । जंबू महिलाओं की निन्दा करता हुआ वैराग्य प्रतिपादक कथानक कहता है। इस प्रकार आधी रात हो गई जंबू का मन सांसारिक विषयों से विरत रहा । इतने में ही विद्युच्चर चोर चोरी करता हुआ वहाँ आया। ____जंबू की माता भी जागती थी उसने कहा चोर जो चाहता है ले ले । चोर को जंबू की माता से जंबू के वैराग्य भाव की सूचना मिली । विद्युच्चर ने प्रतिज्ञा की कि या तो जंब को रागी बना दूंगा अन्यथा स्वयं भी वैरागी हो जाऊँगा। घता-बहु वयण कमल रस लंपडु, भमर कुमार न जइ करमि। आएण समाणु विहाणए, तो तव चरणु हउं वि सरमि॥ जंबू की माता उस चोर को उसी समय अपना छोटा भाई कह कर जंबू के पास ले जाती है ताकि विद्युच्चर अपने कार्य में सफल हो (९)। १०वों संधि में जंबू और विद्युच्चर एक दूसरे को प्रभावित करने के लिए अनेक व्याख्यान सुनाते हैं । जंबू वैराग्य प्रधान एवं विषय भोग की निस्सारता, प्रतिपादक आर यान कहते हैं और विद्युच्चर इसके विपरीत वैराग्य की निस्सारता दिखलाने वाले विषय भोग प्रतिपादक आख्यान । जंबू स्वामी की अंत में विजय होती है। जंबू सुधर्मा स्वामी से दीक्षा लेते हैं और उनकी सभी पत्तियाँ भी आर्यिका हो जाती हैं। जंबू स्वामी केवल ज्ञान प्राप्त कर अन्त में निर्वाण पद प्राप्त करते हैं। विद्युच्चर दशविध धर्म का पालन करते हुए तपस्या द्वारा सर्वार्थ सिद्धि प्राप्त करते हैं। जंबू चरिउ के पढ़ने से मंगल लाभ का संकेत करते हुए कृति समाप्त होती है (११)। ग्रंथ में जंबू स्वामी के पूर्वजन्मों का वर्णन है । वह पूर्व जन्मों में शिवकुमार और भवदेव थे। उनका बड़ा भाई सागरचन्द्र और भवदत्त था । भवदेव के जीवन में स्वाभाविकता है। भवदत्त की कथा स्वयं अनावश्यक थी । भवदत्त को कवि ने प्रतिनायक के रूप में भी • अंकित नहीं किया। फिर भी उसके कारण भवदेव के जीवन में उतार चढ़ाव और अन्तद्वन्द्व का चित्र अंकित किया जा सका है । इसी प्रकार जब स्वामी की अनेक पत्नियों के पूर्व जन्म प्रसंग भी कथा प्रवाह में कोई योग नहीं देते और वे भी अनावश्यक ही हैं। जबू स्वामी के चरित्र को कवि जिस दिशा की ओर मोड़ना चाहता है उसी ओर वह मुड़ता गया है, जिस लक्ष्य पर उसे पहुँचाना चाहता है उसी पर वह अन्त में पहुँच जाता है। किन्तु फिर भी उसके जीवन में अस्वाभाविकता नहीं। उसके जीवन में कभी विषय गासनाओं की ओर प्रवृत्ति और कभी उनका त्याग कर विरक्ति दिखाई देती है। अतएव उसका चरित्र स्वाभाविक हो गया है। जंबू स्वामी के चरित्र के अतिरिक्त किसी अन्य
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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