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________________ दृष्टिगोचरछे. अंग्रेजोना शोधमा आवेली पृथ्विनी वसति लगभग दोढ अबजनी गणाई छे, तेमां सर्व गच्छनी मळीने जैन प्रजा मात्र वीश लाख (छेल्ला वसतिपत्रक प्रमाणे लगभग १३ लाखनी) लगभग छे ए प्रजा ते श्रमणोपासकनी छे. एमांथी हुं धारुं छं के, नवतत्त्वने पठनरुपे बे हजार पुरुषो पण मांड जाणता हशे; मनन अने विचारपूर्वक जाणनारा तो आंगळीने टेरवे गणी शकीए तेटला पुरुषो पण नहीं हशे; ज्यारे आवी स्थिति तत्त्वज्ञान संबंधी थई गई छे, त्यारेज मतमतांतर वधी पड्या छे. सर्वज्ञ भगवाननुं कहेलुं गुप्त तत्त्व प्रमाद स्थितिमा आवी पडयुं छे. तेने प्रकाशित करवा तथा पूर्वाचार्योनां गुंथेलां महान् शास्त्रो एकत्र करवा, पडेला गच्छनां मतमतांतरने टाळवा तेमज धर्म. विद्याने प्रफुल्लित करवानी अवश्य छ एम दर्शावु छु. पवित्र स्याद्वादमतनुं ढंकाएलुं तत्त्व प्रसिद्धिमा आणवा ज्यां सुधी प्रयोजन नथी त्यांसुधी शासननी पण उन्नति नथी. वाडामां बेसी रहेवा करतां मतमतांतर तजी एम करवु उचित छ. हुं इच्छु छ के ते कृत्यनी सिद्धि थइ, जैनांतर गच्छ मतभेद टाळो, सत्य वस्तु उपर मनुष्य मंडलर्नु लक्ष आवो अने ममत्व जाओ." ( मोक्षमाळा) . आ विचारो संवत् १९४३ नी सालमां समाज समक्ष मुक्या हता. आ समय एवो हतो के, ज्यारे समाजनो लक्ष बहुधा मतमतांतरनां रक्षण करवामां, अने ज्ञानरहित शुष्क क्रियाओमां कल्याण मानी लेवामां आवतुं हतुं. ज्ञान, आत्मज्ञान के तत्त्वज्ञाननो लक्षज लगभग आवरण पामी गयो हतो. ज्यारे श्रीमान् राजचंद्रे समाजने पोतान जीवन कर्तव्य आत्मत्व संबंधे शुं छे ते जाहेर कर्यु त्यारे समाजने ते वात उपर कडं तेम मी. बर्कना कहेवा प्रमाणे न समजाइ पण, हवे ते वात उपर लक्ष्य जतो जाय छ, ए जोइ संतोष थाय छे. ___ जैनने विषे मुख्य बे शाखाओ छे. श्वेतांबर अने दिगंबर. लगभग बे हजार वर्ष थयां तेओनी बच्चे अभिप्राय भेद एवो थइ गयो हतो के
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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