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________________ मोक्षमाळा. पुस्तक बी. शिक्षापाठ १ वांचनारने भलामण. वांचनार ! आ पुस्तक आजे तमारा हस्तकमळमां आवे छे, तेने लक्ष पूर्वक वांचजो, तेमां कहेला विषयोने विवेकथी विचारजो, अने परमार्थने हृदयमां धारण करजो. एम करशो तो तमे नीति, विवेक, ध्यान, ज्ञान, सद्गुण अने आत्मशांति पामी शकशो. तमे जाणता हशो के केटलांक अज्ञान मनुष्यो नहीं वांचवा योग्य पुस्तको वांचीने अमूल्य वखत वृथा खोइ दे छे, जेथी तेओ अवळे रस्ते चडी जाय छे, आ लोकमां अपकीर्ति पामे छे, अने परलोकमां नीच गतिए जाय छे.. भाषाज्ञाननां पुस्तकोनी पेठे आ पुस्तक पठन करवानुं नथी, पण मनन करवानुं छे. तेथी आ भव अने परभव बन्नेमां तमाएं हित थशे. भगवाननां कहेलां वचनोनो एमां उपदेश कर्यो छे. __ तमे आ पुस्तकनो विनय अने विवेकथी उपयोग करजो. विनय अने विवेक ए धर्मना मूळ हेतुओ छे. तमने बीजी एक आ पण भलामण छे के जेओने वांचतां आवडतुं न होय अने तेओनी इच्छा होय तो आ पुस्तक अनुक्रमे तेमने वांची संभळावq.
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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