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शान संबंधी बे बोल भाग ३.
११७ तेमां पण आर्यभूमि ए देश भावे अनुकूळ छे. जिज्ञासु भव्य ! तमे सघळा आ काळे भारतमा छो, माटे भारत देश अनुकूळ छे. काळभाव प्रमाणे मति अने श्रुत प्राप्त करी शकाय एटली अनुकूळता छे. कारण आ दुःषमपंचम काळमां परमावधि, मनःपर्यव अने केवळ ए पवित्र ज्ञान विच्छेद छे. एटले काळनी परिपूर्ण अनुकूळता नथी.
४ देशकाळादि जो अनुकूळ छे तो क्यां सुधी छे ? एनो उत्तर शेष रहेलुं सिद्धांतिक मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, सामान्यमतथी ज्ञान काळभावे एकवीश हजार वर्ष रहेवानुं तेमांथी अढी सहस्त्र गयां, बाकी साडाअढार हजार वर्ष रह्यां; एटले पंचमकाळनी पूर्णता सुधीकाळनी अनुकूळताछे. देशकाळ ते लेइने परिपूर्ण अनुकूळ छे. शिक्षापाठ ७९ज्ञान संबंधी बेबोल भाग ३.
हवे विशेष विचार करीए.
१. आवश्यकता शी छे ? ए महद् विचारनु आवर्तन पुनः विशेषताथी करीए. मुख्य अवश्य स्वस्वरुपस्थितिनी श्रेणिए चढवू ए छे अनंत दुःखनो नाश, दुःखना नाशथी आत्मानुं श्रेयिक सुख ए हेतु छे केमके सुख निरंतर आत्माने प्रियज छे पण जे स्वस्वरुपिक सुख छे ते. देशकाळ भानने लेइने श्रद्धा, ज्ञान इ० उत्पन्न करवानी आवश्यकता अने सम्यग् भाव सहित उच्चगति, त्यांथी. महाविदेहमा मानवदेहे जन्म, त्यां सम्यग् भावनी पुनः उन्नति तत्त्वज्ञाननी विशुद्धता अने वृद्धि छेवटे परिपूर्ण आत्मसाधन ज्ञान अने तेनुं सत्य परिणाम केवळ सर्व दुःखनो अभाव एटले अखंड, अनुपम अनंत शाश्वत पवित्र मोक्षनी प्राप्ति ए सघळां माटे ज्ञाननी आवश्यकता छे !